दूसरों से तो बहुत सुना होगा आपने, अपने लिए
कभी आप भी अपने से मिललें, ताज़गी के लिए।
उसकी रहनुमाई मोड़ पर ही होगी, आपके लिए।
इल्तिजा तो करें, मंज़िल भी आ जायेगी आपके लिए
यक़ीन रखें, उसकी महक चली आयेगी आपके लिए।
उसकी हवाऐं तो चलती रहती हैं हरदम, हर सिम्त में
कभी झौंका आ ही जायेगा इस जानिब, आपके लिए।
यह मत समझ लेना कि दुनिया भर नाराज़ है आपसे
आपसे बढ़कर कोई नाराज़ नहीं आपसे,आपके लिए।
इरादा तो होता ही है कुछ न कुछ हासिल करने के लिए
कोशिश होती है नामुमकिन को मुमकिन करने के लिए।
हिचकियां आती हैं तो ज़रूरी नहीं कि प्यास लगी हो
तन्हाई दूर करने को, आ सकती हैं बात करने के लिए।
हर किसी को कोई न कोई हमनवा मिल ही जाता है
हां कोई हमशक्ल मत ढ़ूंढ़ने लगना, उसे पाने के लिए।
वक़्त इशारा करे तो उसको ताक़ीद मान लीजिए
सामान मुख़्तसर कर लीजिए, कूच करने के लिए।
कहीं कोई सौदागर न आजाए, सौदा करने के लिए
मैंने ज़िन्दगी सुपुर्द करके रखी है, उम्र भर के लिए।
नफ़स पर नज़र रख लेना अपने इस जिस्म के लिए
क्योंकि यह जिस्म ही क़बा है, अपनी रूह के लिए।
रहनुमाई= रहमत। हमनवा= एकसे ख़्याल वाला।
ताक़ीद= आदेश। मुख़्तसर= थोड़ा। क़बा= चोगा।
नफ़स= सांस। जानिब= दिशा, सिम्त।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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