Popular Posts

Total Pageviews

Monday, March 29, 2021

एक किसान

एक किसान था बड़ा सरल ह्रदय
उसका घोड़ा था सुंदर हिरण्यमय
एक दिन उसका घोड़ा भाग गया
उसके पड़ोसी जो थे बड़े सहृदय।
आये जताने को उससे सहानुभूति
किसान था शान्त, बिना अनुभूति।

दूसरे दिन घोड़ा उसका लौट आया
साथ में एक घोड़ा भी लेकर आया
पड़ोसी भाग के आये, ख़ुशी जताने
बड़ा उम्दा घोड़ा है, साथी ले आया।
किसान के लिए जैसे कुछ हुआ नहीं
वह ख़ामोश रहा, कुछ बोला ही नहीं।

नया घोड़ा किसान के बेटे को भा गया
एक दिन वह उसकी पीठ पर चढ़ गया
घोड़ा उसको लेकर जंगल में भाग गया
वहाँ उसे गिरा दिया,बेटे का पैर टूट गया।
गाँव वाले फ़िर आये, भारी दुःख मनाया
किसान शाँत था,पैरपे मरहम लगा दिया।

अगले दिन कुछ सैनिक अधिकारी आये
हर घर से जवान लड़कों को उठा ले गये
किसान के बेटे का पैर टूटा हुआ देखकर
उसको वहीं छोड़कर अधिकारी चले गये।
गाँव वाले आये, बोले, तुम अच्छे बच गये
उसने कुछ न कहा और तब वो चले गये।

आगे क्या होगा, किसी को कुछ पता नहीं
अच्छा होगा अथवा बुरा, यह भी पता नहीं
वक़्त के हाथों में रहती है जीवन की चाबी
जैसे घुमाए, जो परोसे, उसको नकारें नहीं।
शान्त रहकर आगे ही आगे को चलते चलें
शान्ति से शान्ति के धीरज को सँजोते चलें।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Sunday, March 28, 2021

आँसू

ये जो आंखों में छलकता है पानी
न समझ लेना इसको, कोरा पानी
समझने के लिए कोई भी, कहानी
मिलेगा नहीं कहीं भी इसका सानी।
इसकी तासीर में जो होती है रवानी
सूखने पर भी बनती है एक कहानी।

हर आँसू में छिपा रहता कोई राज़ है
ज़िन्दगी से जुड़ा रहता , कोई राज़ है
ज़िन्दगी होती जो है इतनी ख़ूबसूरत
क्योंकि हर राज़ होता इसका साज़ है।
राज़ का जब टूटने लग जाता है साज़
ज़िन्दगी बनने लगती है फ़िर, नासाज़।

एक क़तरा आंसू में समन्दर , छिपा है
जहां की आग बुझाने का सामां छिपा है
जिसको कोई तूफ़ान हटा नहीं सकता
उसको बहा ले जाने का सैलाब छिपा है।
दर्द उठने पर जो आंसू छलक पड़ते हैं
वो यादों का समन्दर लिए फ़िरा करते हैं।

कुछ हैं जो आंसू बहाते नहीं,  पी जाते हैं
जब आंसू आते हैं वे होंठों से मुस्कुराते हैं
आंसू खोलते हैं राज़, वो छुपाया करते हैं
मुझको तरस आता है, वो सो नहीं पाते हैं।
आंखों में लिए फिरता हूं मैं हर दम दरिया
प्यासा न लौटे कोई , क़िस्मत का सताया।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।





Wednesday, March 24, 2021

कश्ती

मुझको मिली थी कश्ती सुहानी
जिसकी है सुन्दर सी एक कहानी
गाँव था छोटा सा गुमसुम सा एक
जिसमें मिली थी मुझको निशानी
बाक़रीना सब होता गया, घर मेरा सफ़ीना बनता गया
ऐसा रहा कुछ तेरा करम, सफ़ीना नगीना बनता गया।

बग़ीचा था फ़िर एक हमने लगाया
खिला फूल जो भी दिल से लगाया
बख़्शीश तेरी झड़ी बन गई
भर के जी सब कोई उसमें नहाया
सहारा जो तेरा मिलता गया, तेरा नाम बहाना बनता गया
तेरे साये में मैं चलता गया, रास्ता ख़ुद ब ख़ुद बनता गया।

सरहदें पार करते चलते गये
सफ़र में आगे को बढ़ते गये
हम तो रहे बेख़बर ख़ुद से लेकिन
तेरी ख़बर उसूलन रखते गये
किनारा नज़र से दिखता रहा, सफ़र ये बराबर चलता गया
रहम था तेरा, करम था तेरा, दरिया भी साथ चलता गया।

सब कुछ सदा यकसाँ रहता नहीं
जो आज है वो कल रहता नहीं
ये दस्तूर अज़ल से चलता रहा है
यहाँ मुस्तकिल कोई रहता नहीं
कश्ती में मेरी छेद हो गया , नगीना मेरा जुदा हो गया
कश्ती यहीं पे पड़ी रह गई , नाख़ुदा मेरा बिदा हो गया।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


Saturday, March 20, 2021

वादा

मिलते रहे हैं, और मिलते रहेंगे , हम आप , बार बार
मिलने बिछड़ने का सिलसिला चलता रहेगा बार बार।

हम जब मिलेंगे तो आमने-सामने होंगे हम, बहुत  बार

पहिचान न सकेंगे, क़बा ए जिस्म होगा अलग, हर बार।

दिल की धड़कनें खींच कर ले आयेंगी पास, बार बार
एहसास हुआ करेगा, पहिले भी मिले चुके हैं, कई बार।

बहार आती है ख़ुशी लाती है, मगर जाती भी है हर बार
आख़िरकार जो आएगा बारबार,तो जाएगा भी बार बार।

ग़म की अंधेरी रातें आती हैं तो आया करें, मर्ज़ी उनकी
रात के बाद दिन तो बिला नागा आया करेगा, हर बार।

आपकी आवाज़ सुनाई पड़ेगी मुझको, जितनी भी बार
ये वादा है मिलने की जुस्तजू करूँगा मैं, उतनी ही बार।

क़बा ए जिस्म = जिस्म की ओढ़नी।
जुस्तजू = तलाश।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


Monday, March 15, 2021

फुटकर!

जो है ना-काफ़ी, वही है काफ़ी, मेरे लिए
जो है प्राप्त, वही सब है पर्याप्त मेरे लिए
और-और बढ़ाता है कीमत बेचने के लिए
जबकि ज़ब्त बढ़ाता है सब्र, ख़ुशी के लिए।

दरख़्त ने पत्ते से कहा, मेरी बात को ग़ौर से सुनना
यहाँ एक आता एक जाता, ये हक़ीक़त पहिचानना।

पेड़ कहत है पात से , तू सुनले मेरी  बात
इस घर की रीति ये, इक आवत इक जात।

ज़िद्दी है वो , बिना बुलाए भी आएगी
आख़िर वफ़ात है, वफ़ा तो दिखाएगी।

जिस्म को तो मौत से हार जाऊँगा, अब नहीं तो फ़िर सही
ख़ुशबू के मानिंद बिखरा मिल जाऊँगा मैं , कहीं ना कहीं।

ग़म नहीं ग़र कोई मुझको दग़ा दे दे
मैं ना करूँ दगा, ऐसा करम कर दे।

वक्त को वो सभी कुछ याद है
जो कभी रही तेरी फ़रियाद है
तू फ़िक्र ना कर , रख भरोसा
काम होने की होती, मियाद है।

मैंने कहा मौत से , मैं तैयार हूं , क्या तुम भी तैयार हो?
चुप मत रहो,ये तुम्हारा इख़्तियार है,तुम मेरी मैयार हो
मुझे तुम्हारे जवाब का इंतिज़ार है , हर रोज़ , हर पहर
ताकि तुम्हारे इस्तक़बाल को मेरा , रेज़ा रेज़ा तैयार हो।

भोजन नहीं है कोई ज़रूरी
मगर है ज़रूर इक मज़बूरी
चाहता हूँ इसी जिस्म से मैं
पा जाऊँ वह जो है ज़रूरी।

सुनो मेरी ये जो अहलिया है
जिसका सादा सा हुलिया है
मैं सबको बाख़बर कर दूँ कि
वह अस्ल में एक औलिया है।

कहते हैं , हद हद चले सो औलिया
और ये कि जो अनहद चले सो पीर
हद अनहद दोऊ चले,एकल रंग रचे
सब कोई बोले कि होगा कोई फ़क़ीर।

इस मीज़ान से नापलें वो औलिया हैं, हद जो लाँघी नहीं
हद अनहद के परे का फ़क़ीर हूँ मैं , मगर लकीर का नहीं।

उठने के लिए पहिले बैठना ज़रूरी है
जैसे भरने के लिए ख़ालीपन ज़रूरी है
यह सब लाओत्से ने सिखाया था कि
आने की ख़ातिर जाना होता ज़रूरी है।

जाना लाज़िमी है, इसको मुकर्रम बनाएं
मुलाकात ए मर्ग को क्यों न ख़ुर्रम बनाएं
जिस्म के परे में जो पोशीदा बनी रहती है
उस ग़ैबी तवानाई से मौका,मुकर्रम बनाएं।

जीवन नदिया बहती जाइ, छूटे कितने पाट
एकहि रट मन में लगी, कब पाये निज घाट।

हक़ीक़त की फ़ितरत पोशीदा हुआ करती है
जैसी वह दिखती है, वैसी हुआ नहीं करती है
वह तो बोई हुई है ज़िन्दगी के हर इक धागे में
जब फ़सल कटती है,तो मालूम हुआ करती है।

हक़ीक़त के कई नाम हैं जैसे हक़,माबूद,बख़्त
एक नाम जो अक्सर सुना जाता है,वह है वक्त
वक्त आहट नहीं करता पर हुक्म देता हर वक्त
अपील नहीं है, होता कभी मीठा कभी करख़्त।

ज़िन्दगी तो गुज़ार दूँगा पर तुम होते तो कुछ ऐसा होता
जैसे तड़पती धरती पे बारिश होने से हाल उसका होता।

तुम अगर जाते हो, ठीक है, पर इतना तो करना
साँस के मानिंद जा कर, फ़िर लौट आया करना।

मुझे क्या चाहिए तुम्हारी याद के सिवा
एक एक लफ़्ज़ याद है जो बना सिला।

क्यों ग़म करूँ अगर छोड़ते हो मुझको ?
जो दे दिया है वही सम्हाल लेगा मुझको।

वफ़ात= मौत। मैयार= कसौटी।
इस्तक़बाल= स्वागत।रेज़ा रेज़ा= कण कण।
अहलिया= जीवन संगिनी।मीज़ान= तराज़ू।
मुकर्रम= पूज्य।मर्ग = मौत।ख़ुर्रम= ख़ुश।
ग़ैबी= पार लौकिक।तवानाई= ताक़त।
पोशीदा= छिपी हुई।हक़=रब।माबूद= पूज्य।
बख़्त= भाग्य।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Monday, March 8, 2021

मुसाफ़िरख़ाना

जो मुसाफ़रत करता है, उसको मुसाफ़िर कहते हैं
जो सफ़र में साथ रहता है, उसे हमसफ़र कहते हैं
जो रहगुज़र पे मिलता है, उसको राहगीर कहते हैं
मगर जिससे दिल मिलता, उसे हमसफ़ीर कहते हैं।

दानिशमंद इस जहान को, मुसाफ़िरख़ाना कहते हैं
मुसाफ़िरान का ये ख़ानाख़्वाह है, इसलिए कहते हैं
यहां पर हर किस्म के मुसाफ़िरों की आमद होती है
कोई मुस्तक़िल होकर नहीं रहता, ऐसा सब कहते हैं।

कुछ लोग यहां मुसाफ़ात तो कुछ मुसारअत करते हैं
वहीं , कुछ मुसाअदत तो कुछ मुसादमत भी करते हैं
मगर कुछ ऐसे भी हुआ करते, जो मुसाबरत करते हैं
और , मुसाफ़िरख़ाने के ख़ालिक का , दीदार करते हैं।

और तब ये मुसाफ़िरख़ाना एक दौलतख़ाना बनता है
जहां पे जुस्तजू ख़त्म होती और फ़िर क़स्द मिलता है
ज़र्रा ज़र्रा इस ख़िल्कत का रौशनी से लबरेज़ होता है
सफ़र बन्द होता जब सुकूत ओ सुकून भरपूर होता है।

मुसाफ़रत= यात्रा। रहगुज़र= रास्ता। दानिशमंद= ज्ञानी।
खानाख़्वाह= पड़ाव। मुसाफ़ात= दोस्ती।मुसारअत= रंजिश।
मुसाअदत= मदद। मुसादमत= कष्ट। मुसाबरत= सब्र।
ख़ालिक़= स्रष्टा। जुस्तजू= तलाश। क़स्द= संकल्प। 
ख़िल्कत= स्रष्टि। लबरेज़= लबालब। 
सुकूत ओ सुकून= सन्नाटा और शान्ति।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, March 4, 2021

मुंतज़िर

मेरी आंखों में जो लिखा है, सभी पढ़ नहीं पाते
वो मुह को ताकते हैं, ख़ामोशी समझ नहीं पाते
यह जो इबारत है, ग़ैबी मनकों से बना करती है
जो जुनूनी नहीं हें, वो मनकों को पिरो नहीं पाते।

कोई लम्हा होता है , आँखों में नक्श हो जाता है
कोई होता है , जो आँसू बनकर छलक जाता  है
दामन से पोंछने से वह , कोई पुछ नहीं जाता  है
हक़ीक़त में  वो नक्श ए फ़िल हजर बन जाता है।

धूप और चांदनी एक हैं , बस सीरत का फ़र्क़  है
आबो यख़ भी एक ही हें , बस सूरत का फ़र्क़ है
सिक्का एक होता है, गोकि पहलू दो हुआ करते 
वफ़ात और हयात में,सिर्फ़ एक साँस का फ़र्क़ है।

इस ख़िलक़त में हरदम, बहुत कुछ हुआ करता है
कुछ माक़ूल तो कुछ नामाक़ूल भी हुआ करता  है
जो हुआ करता है उससे बेख़बर रहें तो कैसा रहे ?
लगता नहीं हमारे न होने से , फ़र्क़ हुआ करता है।

मुन्तज़िर= इंतिज़ार करने वाला। ग़ैबी= supernatural
नक्श= print. आबो यख़= पानी और बर्फ़।
नक्श ए फ़िल हजर= engraved in stone.
वफ़ात और हयात= मृत्यु और जीवन।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।