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Thursday, September 24, 2020

सिखा दिया

बख़्शा के खुला आसमाँ
बाहें फैलाना सिखा दिया
रंग भर के चमन में
सैर करना सिखा दिया।

जब भी घिरा मायूसियों से
या तन्हा हुआ तन्हाइयों से
तेरी इनायतों ने , कन्हैया
दिल को गाना सिखा दिया।

ज़िन्दा हैं मेरी चकल्लसें
तेरे ही रहमो-करम से
दिल में उल्फ़त के गीत भरके
गुनगुनाना सिखा दिया।

उफ़क को देके शफ़क के रंग  
आसमानों को देके उड़ते विहंग
फूलों को बख़्शा के रूप-रंग
मुस्कुराना सिखा दिया।

उफ़क=horizon. शफ़क=dawn/dusk colors.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि

Wednesday, September 23, 2020

जंग गाह

कभी सरहद कभी मज़हब,जंग रुकती क्यों नहीं
कब्र गाह बनी तवारीख़ , होश , आता क्यों नहीं
कभी सीज़र कभी सिकंदर , कभी ज़ारो ज़रीना
फ़ातेह तो हुए बेइंतिहा , नज़र आते क्यों नहीं।

जंग लड़ता रहा, फ़िर मन भरता क्यों नहीं
क्या हासिल हुआ, हिसाब रखता क्यों नहीं
जिस को मारा है, तूने , तेरे नाम लिख गया
इंसानियत की शिकस्त पे तू रोता क्यों नहीं।

जंग जीतकर भी बात , बनती क्यों नहीं
शोहरत तो मिल गई, मुतमुइन क्यों नहीं
क्या ज़िन्दगी भर यों ही छटपटाया करेगा
रणछोड़ से तू फ़लसफ़ा सीखता क्यों नहीं।

ईसा को तो मारा, ज़ुल्म को मारा क्यों नहीं
बापू को मारा , नफ़रत को मारा क्यों नहीं
जब भी मारा , प्यार करने वाले को मारा
कैसे मरता प्यार में मंसूर , समझा क्यों नहीं।

तू ख़ाक से ढक गया है , आईना देखता क्यों नहीं
तुझे ख़ुद की ख़बर नहीं,किसी से पूछता क्यों नहीं
तुझे देख कर , नम हो जाती हैं , आँखें मेरी
तुझे अपनी बदहाली पे रहम आता क्यों नहीं।

फ़ातेह=victors. मुतमुइन=संतुष्ट।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Monday, September 21, 2020

सच कहूँ

कभी मीरा बिलखती थी, कभी कबिरा बिलखता था
कभी रबिया बिलखती थी, कभी रूमी बिलखता था
ये दौलत मुहब्बत की , बेशुबह: नायाब होती है
सुदामा के ज़ख्म धो धो , कन्हैया बिलखता था।

मुझे डर है तुम मुझे फ़िर से लूट मत लेना
ये छिटकी हुई चाँदनी भी , छीन मत लेना
मैंने इबादत करी है , सनद तो नहीं माँगी
तुम मुझसे मेरी आवाज़ भी माँग मत लेना।

ज़ख़्म मुझको मिले बेहद, ये कैसे भूल मैं जाऊँ
ज़ख्म मेरे करम परवर , ये कैसे भूल मैं जाऊँ
ज़ख्मों की बदौलत ही तो तुमको याद रखता हूँ 
ज़ख्म नायाब दौलत हें , ये कैसे भूल मैं जाऊँ।

मैं किसी का हो नहीं सकता, मैं तेरा हो के बैठा हूँ 
कोई बहला नहीं सकता, मैं फ़ैसला करके बैठा हूँ 
कोई माने या न माने , मगर यह तो हक़ीक़त है
मैं तुझे खो नहीं सकता, मैं सबकुछ खो के बैठा हूँ ।

दौलत कमाने में , जिस्म को गँवा दिया
फ़िर ग़ैरत बचाने में,ज़र को गँवा दिया 
ज़िंदगी चुकती चली , जीना आया नहीं
मुहब्बत बाँटने का , मौका गँवा दिया।

ग़ैरत =लाज। ज़र=धन।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

मुनव्वर

भुला न देना यों दिल से मुझको
कि जैसे तुमको ख़बर ही नहीं है।
तुम्हारी ही ख़ातिर दिल की पूजा
मसल्सल, मुनव्वर, चलती रही है।

मुझको है तुमसे ही नूर मिलता
बिना तुम्हारे तो ज़फ़र नहीं है। 
भला मैं क्या कर सकूँगा तुम बिन
क्या तुमको ये भी ख़बर नहीं है?

मैं तुमको आख़िर क्या दे सकूँगा
फ़क़ीरी मुझको रास आ रही है।
ख़याल मेरा तुम को ही रखना
कि आख़िरी सफ़ पास आ रही है।

दिलों से मिलने हैं दिल ही आते
ये ही रवायत चलती रही है।
अगर जो कोई , दिल हार जाये
फ़तह उसी को , मिलती रही है।

मसल्सल = लगातार। मुनव्वर= प्रकाशमान।
ज़फ़र = विजय। सफ़ = क़तार।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Friday, September 18, 2020

सैविन सिस्टर्स

शाम का वक्त है और हम बैल्कनी में शाद बैठे हैं
मैं, मेरी अहलिया, साझा कर रहे किस्से अनूठे हैं।

सूरज ढलने वाला है , सेमल के दरख़्त के पीछे
फागुन में सेमल पर होते हैं लाल फूलों के गुच्छे।

आजकल इस पर सैविन सिस्टर्स का, नशेमन है
अभी उनके गुल से गुलज़ार हो जायेगा , सहन है।

सैविन सिस्टर्स को मायूसी , सन्नाटा नहीं है पसंद
रात काबिज़ होने से पहले, ख़ूब मचाती हैं हुड़दंग।

कभी मैं अकेला ही बैठा हुआ होता हूँ, बैल्कनी में
सहसा घिरा पाता हूँ, सात जोड़ी आँखों के घेरे में।

मेरे अकेलेपन पर शायद उनको तरस हो आता है
जिसे बेइंतिहा चिल्लाकर उनको भगाना पड़ता है।

आख़िर सिस्टर्स ही जगह जगह ख़िदमात करतीं हैं
यहाँ पे सैविन सिस्टर्स मेरी ख़िदमत किया करती हैं।

शाद = ख़ुश। अहलिया= जीवन साथी।
नशेमन = बसेरा।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, September 16, 2020

अब कैसा झगड़ा

जिस्म पर भरोसा करने वाले ख़ूब मिलते हैं
रूह पर करने वाले मगर , नदारद मिलते हैं
मुश्किल है समझ पाना कि वक्त की मार से
जिस्म गिरते हैं, रूह के तोहफ़े बचे रहते हैं।

किसी को चांद ख़ूबसूरत, दिखाई पड़ता है
किसी को मगर वो, दाग़दार दीख पड़ता है
कोई चाहे या न चाहे, मगर ऐसा देखा गया
एक इंसान को भी चांद तो, बनना पड़ता है।

ख़याल आता है तो उसे रोका नहीं जाता है
ख़याल आने पर ख़याल को, देखा जाता है
ख़याल चलता रहता है, और चला जाता है
मगर देखने वाला, वहीं पे रुका रह जाता है।

जब देखने वाला , ऐसा , मुकम्मल होता है
वह देखा करता है, काम भी होता रहता है
काम होता रहता है, फ़िर झगड़ना किससे ?
मैं करता हूं, बस यहीं से तो झगड़ा होता है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Sunday, September 13, 2020

बुलबुल का जोड़ा

कुछ लोग कहते हैं , मुर्गा बोलने पर सुबह आती है
उनके पास मुर्गा होगा, शायद इसलिए वह आती है।

अक्सर तो लोगों की सुबह अलार्म बजने पै आती है
लोग बटन दबा देते हैं तो सुबह रफ़ा भी हो जाती है।

कुछ लोग मुझसे भी पूछते हैं, मैं कैसे उठा करता हूँ 
उनकी तसल्ली के लिए ये क़िस्सा सुनाया करता हूँ ।

मेरे पड़ोस के पेड़ पै एक बुलबुल का जोड़ा रहता है
उसमें से कोई एक है जो अलस्सबाह गाने लगता है।

कुछ देर बाद, दूसरे के गाने की भी, आवाज़ आती है
पहिली दूसरी, पहली दूसरी, बराबर आवाज़ आती है।

ये दोनों आवाज़ें, एक दिलकश, नग़मे में ढलती हैं
अदल बदल की मधुर संगत, मेरी सुबह, बनती है।

उस बुलबुल के जोड़े को , बारहा शुक्राना देता हूँ 
तू देता है वही, जो दरकार है, रब को कह देता हूँ ।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Saturday, September 12, 2020

रियोकैन टाइगू

एक फ़कीर था जापान में, नाम था रियोकैन टाइगू
बा-सटोरी था , हाइकू  में किया करता था  गुफ़्तगू।

वह रहता था, गाँव से दूर, एक पहाड़ की तलहटी में
घास के बिछौने के सिवा, कुछ न था उसकी कुटी में।

फ़ज्र का वक्त था, वह गया था नहाने एक तालाब में
एक कूचागर आया, और दाख़िल हुआ पनाहगाह में।

कुटी में कुछ था नहीं, निकला तो टकराया टाइगू से
भागने लगा तो फ़कीर ने रोक के कहा, जजमान से।

मेरी कुटी में कुछ भी नहीं है , आपको देने के लिए
मेहरबान , मेरे कपड़े लेकर मुझ पर करम कीजिए।

रियोकैन ने कपड़े उतार कर , अजनबी को दे दिए
कूचागर हैरतअंगेज, भागने लगा , होश थे उड़े हुए।

बरहना खड़ा था रियोकैन, कहा, काश वो रुकजाता
मैं अपनी खिड़की में उतरता चाँद , तोहफ़े में दे देता।

बा-सटोरी= समाधिप्राप्त। हाइकू= haiku. 
गुफ़्तगू=बातचीत। फ़ज्र=early morning. 
कूचागर= prowler. पनाहगाह=शरणस्थली।
करम=क्रपा। हैरतअंगेज़=stunned. बरहना=nude.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि। 

Friday, September 11, 2020

मक़सद

तुम्हें मंज़ूर होता है , मुझे मक़बूल होता है
तुम्हारा फ़ैसला जोभी, मेरे माकूल होता है
हर बात में किनाया भी , मख़फ़ी , होता है
तहक़ीक़ात करने में, मन मशगूल होता है। 

मेंने तो तिजारत नहीं की, इबादत  ही की है
पूछलो इन आँखों से जिन्होंने सदारत की है
शिकस्त खाई है , हिम्मतपस्त नहीं हुआ हूँ 
मेंने हर दरख़्वास्त के साथ,  ज़ियारत की है।

    मंज़िल मिले ही , ये न मक़सद था मेरा
    तुमको भूल जाऊँ, ये न मक़सद है मेरा
    दोराहे पर आकर के , खड़ा ही रहूँ मैं
    ये भी तो अभी तक, न मक़सद है मेरा ।

मेरा काम है मरना, मैं मरके देखा करता हूँ 
हर मरना नई मंज़िल, मंज़र देखा करता हूँ 
कभी नीला कभी पीला तुझे देखा करता हूँ 
रंगों के पार रंग तेरे , तमाशा देखा करता हूँ ।

किनाया=इशारा। मख़फ़ी=छुपा हुआ।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, September 10, 2020

जंग

लोग सजधज कर जाते हैं जंग करने , उनसे   
मिले भी न होंगे ज़िन्दग़ी में कभी भी, जिनसे 
पहली बार मिलने पर, तो मुस्कुराते हैं न सब?
कितना भारी होगा गोली दागना, भारी मन से?

कुछ लोग टीवी पर जंग करते हैं, हर शाम को
हम सोचते हैं कैसे रोकें अब इस कोहराम को
हमने पूछा किसी से जो जानकार थे, वो बोले
आन-बान की लड़ाई है, बचाना है निज़ाम को।

         कहीं अगड़े और पिछड़े की जंग
         कहीं  पै गोरे और काले की जंग
         जब झाँका अपने अन्दर तो पाया
         चल रही ख़ुद की ख़ुद से ही जंग।

जीतनी है ग़र जंग, ख़ुद को जीत लो, साँईं
नफ़स पर नज़र, अपनी ही , रख लो , साँईं
अगर कोई करे हंगामा , चुपचाप सह लेना
मौका इबादत का ,  इबादत कर लो , साँईं।

नफ़स=साँस।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि

Wednesday, September 9, 2020

दुआ

इबादत मेरे अरमानों की मुकद्दस कहानी है
ये तो गंगा के बहते हुए जल की र वानी है
न समझना किसी किस्साख्वाँ की ज़ुबानी है
ये तो बिस्मिल हुए दिल की पहली निशानी है।

बख़्तर है मेरा नूरी, झिलमिल ओ अब्क़री
मुसल्लस में बैठ कर के, तेरी करूँ हुज़ूरी
तेरी इनायतों से, मुकम्मल है मेरा मसकन 
तू ही मेरा मुकद्दर, सदा तू ही तो है ज़रूरी।

तू ने बचा लिया , दिखला कर मुझे उम्मीद
तेरा न बनू तो किसका, जाकर बनू  मुरीद
जब भी हुआ हूँ रूबरू, तूफ़ानों के रेलों से
तूने हटा के बादल, दिखलाया था ख़ुरशीद।

तू रुक नहीं सकता, मैं तुझे खो नहीं सकता
तू हँस नहीं सकता, मैं तुझ पै रो नहीं सकता
कशमकश बढ़ रही है, कुछ कर नहीं सकता
दीवानगी मेरी हक़ीक़त, इसे खो नहीं सकता।

मुकद्दस=पवित्र। अब्क़री=genius, unique.
मुसल्लस=त्रिकोण। मसकन=घर। ख़ुरशीद=सूर्य।

Note: to understand त्रिकोण, please go to
my blog ' Tertius Oculus or the third eye'.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि

Tuesday, September 8, 2020

आपका क्या ख़याल है?

मेरे सामने वाली छत पै, एक झंडा फ़हराता है
उसे देख के मुझको, इक ख्य़ाल उभर आता है।

क्या वो आसमान से मिलने की, तमन्ना करता है
या अपने अकेले अंदाज़ को, मुकम्मल करता है?

कभी तो वो ख़ुश होकर, ज़ोरों से फ़ड़फ़ड़ाता है
कभी मायूसियों के बीच, शिकस्ता नज़र आता है।

लोग कहते हैं , वह हवाओं का रुख़ समझता है
हमें अपना रुख़ समझने का, तरीक़ा बताता है।

मेरा ख़याल है कि वह इबादत, किया करता है
नाज़रीन को परस्तिश की दावत दिया करता है।

मुकम्मल=पक्का। शिकस्ता=हारा हुआ।
नाज़रीन=दर्शक। परस्तिश=पूजा।      
आपका क्या ख़याल है?

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि

Monday, September 7, 2020

आख़िर क्यों?

उस चोटी पै ज़मीं, आसमाँ आते हैं, मिलने के लिए
ऐसा न हुआ, एक आए दूसरा न हो, मिलने के लिए।

कभी मैं जाता हूँ उस चोटी पै, उनसे मिलने के लिए
पाता हूँ, वो चले गए दूर की चोटी पै, मिलने के लिए।

        ज़ख्म भर जाते हैं, चोट मिलने के बाद
        दिल नहीं भरते, बारहा मिलने के बाद।

मिलने के बाद भी बाकी है मिलना, शायद इसलिए
जज़्बा बनाए रखते हैं, आख़िरी बार मिलने के लिए?

    असल में मिलना तो तभी न कहा जाता है
     जब दो की जगह सिर्फ़ एक नज़र आता है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि

Sunday, September 6, 2020

ख़ामोशी

कहते हैं ख़ामोशी में दुआऐं कुबूल होती हैं
रोते रहने से तो बस आँखें फ़ुज़ूल होती हैं।

कोई तो होगी आरज़ू, धरती ख़ामोश रहती है
ख़्वाबों और ख़ाक़ में , इक यारबाशी रहती है।

घुमड़ती घटाऐं देख, बिजली कड़कने लगती है
धरती का तहम्मुल देख, बारिश बरसने लगती है।

ख़ामोश निगाहों में जो इक सुकून रहता है
इक ख़ामोश दिल ही उसे सम्हाल सकता है।

ख़ामोश भर रह पाने की नेमत, तू बख़्श दे
ख़ुद ब ख़ुद तेरी क़राबत में होंगे, तेरे ये बंदे।

यारबाशी=याराना। तहम्मुल=सब्र।
नेमत=वरदान। क़राबत=क़रीब में।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, September 3, 2020

नील फ़ाम

दिल से आवाज़ देना, मैं चला आऊँगा
तुम्हारा नसीब हूँ , मैं फ़र्ज़ निभाऊँगा ।

परचम की तरह मैं, लहराता रहता हूँ 
मुसल्लस के दरम्याँ आबाद रहता हूँ । 

दायम ताज़ातरीन हूँ , मैं ग़ैर फ़ानी हूँ 
ग़ैर जिस्मानी, लासानी, आसमानी हूँ ।

इख़्तियार करने की कोशिश न करना
मुझ पै यक़ीन कर, मेरे पास बने रहना।

अन्दर में  रहना, मुब्तसिर होके रहना
मैं फ़ुरोज़ हूँ , फ़ुरोज़ाँ होके रमे रहना।

मुसल्लस=त्रिकोण। दायम=सर्वदा। 
लासानी=unique. इख़्तियार= overtake.
मुब्तसिर=तसल्ली से। फ़ुरोज़=प्रकाश।
फ़ुरोज़ाँ=resplendent. नीलफ़ाम=नीलबिन्दु।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि