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Sunday, February 20, 2022

है कि नहीं?

सच्चे मोती और फ़रिश्ते में कोई फ़र्क  नहीं
दोनों दमकते हैं कभी भी होते बेअसर नहीं।

ऐतबार हो तो  अफ़सुर्दगी  की  ज़रूरत नहीं
एहसास हो तो ख़्वाइशमंदी की ज़रूरत नहीं।

कहीं दूर रहकर भी रिश्ते क़ायम रहा करते हैं
देखो, सूरज हर रोज़ मिलने आता है कि नहीं?

कभी जो इतना क़रीब था, अजनबी बन  गया
नज़दीकियों से डर लगना, कुछ ग़लत तो नहीं? 

प्यार  करने को  तमाशा  न समझ लेना  कभी
ख़्याल जब आता है तो, ख़ुशबू रुक पाती नहीं।

धूप कुछ सहमी सहमी  सी लग रही है आज
सर्दी वाली चुहलबाज़ी बंद होगी, डर तो नहीं?

जब सुबह मुस्कुराती है, तो मुस्कुरा लिया करें
हर मरतबा कन्जूसी करना भी कुछ ठीक नहीं।

सुबह अगर बिखरती है मुझमें तो क्या करू मैं
किसी को मना करना ? वो मुझको आता नहीं।

इस लमहे को कैसे जाने दू , बिना रूबरू हुए मैं
पहले इससे मिला नहीं, आगे मिलना होगा नहीं।

बहुत मंज़र सजाया किये हें , ज़िन्दगी में मैंने 
कितनों ने मुझको है सजाया , मुझे याद नहीं।

कुछ इस तरह से दिल ने गुफ़्तगू की है अभी
गोया खोने में और पाने में कुछ भी फ़र्क़ नहीं।

झूठ बोलता हूँ  , मेरे अल्फ़ाज़ हँसने लगते हैं
सच बोलता हूँ , यहाँ कोई मुस्कुराता भी नहीं।

नज़रें ही जब सब फ़ैसला कर दिया करती हैं, 
किसी के बोलने का इन्तिज़ार रहता ही नहीं।

अंदाज़ बयाँ कर देते है जो सरज़द हो रहा है
बेतार से होता है सब , तार की  ज़रूरत नहीं।

क्या करू, कुछ करना ज़रूरी भी नहीं लगता
इतने बड़े शहर में, कोई सुनने वाला जो नहीं।

कोई रुख़ करता नहीं, बोलना छोड़िए जनाब
लगता है कि  किसी को मेरी ज़रूरत ही नहीं।

रोने के बाद सूकून मिलता है, क्या शुरू करें?
उसके  लिए जो दिल में है , ज़िन्दगी में नहीं?

बहुत मज़बूर होने पर  ही रोना निकलता  है
यादें भुलाना भी कोई  आसान काम तो नहीं।

साँसें आँसुओं के लिए अल्फ़ाज़ बन जाती हैं
मुह छुपा कर रोने की , कोई ज़रूरत तो नहीं।

बोलने पे इधर उधर कुछ डोलने लग जाता है
ख़ामोशतबा रहना ही ठीक होगा, है कि नहीं?

अफ़सुर्दगी= मायूसी। रूबरू= आमने-सामने।
गुफ़्तगू= बातचीत। अल्फ़ाज़= शब्द (बहुवचन)।
सरज़द= घटित। ख़ामोशतबा= शान्त चित्त।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Monday, February 14, 2022

The Day of St Valentine !

Valentine's day! Shall I dream like Chaucer
For birds to gather before goddess Nature
To choose  mates in her august  presence,
End up with a song , waiting for next year? 

Well, wating is not futile. It's like a towrope
For Love to willingly suspend saying..nope!
And pine all through the year for someone!
After all, waiting  is an  extension of  hope!

Chaucer was the poet  who paved the way
For the resuscitation  of St Valentine's day.
Chaucer  was  innovator , a groundbreaker
For modern poetry , he created a pathway!

14th February is not only St Valentine's day
It is equally the Chaucerian Valentine's day
Love is the main art of his medieval heroes
No wonder it culminated in Valentine's day.

Hail Valentine's day! Hail Chaucer's day!
Hail Chaucer for giving us the Love day!
Hail for showing modern day English, in.
Hail Chaucer's day! Hail Valentine's day!

Om Shantih
Ajit Sambodhi.


Tuesday, February 8, 2022

Spring At Your Door

Come to the fore
Open the door
Spring knocks
At the door!

Look at the sky
It's blue and high
Bright as sunshine
And not a sigh!

See that Robin
With a beak so thin
Chirping cheerily
In a red robe spin!

And what was dud
Has become a bud
Shining in the sun
It's a rosy rosebud!

Thank you my spring
You have a ring
Of refreshing candor
With a lot of zing!

Om Shantih
Ajit Sambodhi.

Saturday, February 5, 2022

बाहर बसंती हवा बह रही है।

बाहर  बसंती  हवा  बह   रही  है
देखो वो तुमसे क्या  कह  रही  है।
सुन लो वो तुमसे जो कह रही  है
बातें रफ़ाक़त की  वो कह  रही है।
मुझे  बंद   रहना  आता  नहीं   है
दिल की न सुनना  भाता  नहीं  है।
नज़रें  चुराना  भी  आता  नहीं  है
बहाने  बनाना भी  भाता  नहीं  है।

ज़रा द्वार खोलो बहार आ खड़ी है
ज़रा आँखें खोलो, बसंती खड़ी  है।
बाहर तो आओ, फिज़ाएं  दिखाऊँ 
चुहलबाज़ी करती, मौजें  दिखाऊँ!
ज़रा  मुस्कुराओ, चमेली  खड़ी  है
पहली किरण की, सहेली खड़ी  है।
उधर देखो  कैसी, नवेली  खड़ी  है
रातों  की   रानी   पहेली  खड़ी  है।

मौसम की पहली किरणें  तो  देखो
सुनहरी सी रश्मि  मचलती तो देखो।
वो हवाओं में उड़ते बगुलों को देखो
खुले आसमाँ में वो कुरजों को देखो।
कैसे  महकती   हैं   मंजरियाँ , देखो
शाखें  भी  कैसे  थिरकती  हें, देखो।
वो बहारों से आगे  बहारों  को  देखो
इधर आओ  देखो गुलाबों  को  देखो।

वो बुलबुल की गुलगुल तुमको सुनाऊँ 
वो  चोंचों  की  चूँ  चूँ   तुमको  सुनाऊँ!
पानी की सरसर है बतख़ों की फरफर
वो  ऊपर  से गिरते झरनों की झरझर।
वो फूलों पे उड़ती  तितली  को  देखो
शबनम  की बूँदें  फिसलती  तो  देखो।
बसंती  हवाओं   से  तुमको  मिलाऊँ 
महकते  गुलशन  को तुमसे  मिलाऊँ!

देखो   बसंती   हवा   सुन   रही    है
वो मेरी ज़रूरत को ख़ुद सुन  रही  है
गुनगुनाहट  को  मेरी वो सुनपा रही है
धड़कन  की  आवाज़  वो  सुन रही है
बहारों  से  मुझको  शिकायत  नहीं  है
पुरवय्या   मुझको   लुभाती   रही    है
 साँसों  में   ख़ुशबू   समाती   रही    है
वहशत   से  मुझको   बचाती   रही  है।

रफ़ाक़त= मेलजोल। वहशत= पागलपन।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Tuesday, February 1, 2022

गले से लगा लो

ये दुनिया तुम्हारी, तुम्हीं ये सम्हालो
मैं  भी  तुम्हारा , मुझे  भी  सम्हालो।

तुम्हीं ने  गीता  में  वादा  किया  था
तुम्हीं ने सभी  को भरोसा दिया  था
जब भी  किसी  पर  विपदा  पड़ेगी
अकेले  न   उसको   सहनी  पड़ेगी।
क्या आओगे  सबके लिए तुम ऐसे?
भागे  सुदामा   को   लेने  को  जैसे?
बुलाता  हूं  आओ  मुझको सम्हालो
मेरी  ख़्वाहिश  को अपनी  बना लो।

तुम्हारे  भरोसे   ही  जीता  रहा   हूं
तुम्हारी बिना पे ही अब  जी रहा हूं
मुझको अकेले  न  छोड़ा करो  तुम
मेरा   सहारा  तो   बस   एक   तुम।
तुम्हीं   से   तो   मेरी  पहिचान   है
तुम्हीं   से   तो   मेरी   मुस्कान   है
जब  भी   चाहो   वापस  बुला  लो
तुम्हारा हूं तुम  ही मुझको सम्हालो।

ज़िंदा  हूं   केवल  ख़ातिर  तुम्हारी
दिखती  है  सबमें   सूरत   तुम्हारी
यही  एक  रिश्ता है  मेरा  सभी  से
यही तो बहाना है मिलने का तुमसे।
सभी कुछ  तो  होता  तेरी रज़ा  से
जज़ा देके  आगे कर  देते  ख़ुद  से
मुझको सिला  से तुम  नाही  तोलो
मुझे  तो बस  तुम गले से लगा  लो।

बिना=दम। जज़ा=सिला=इनाम।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।