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Tuesday, October 27, 2020

जंग रुकती क्यों नहीं?

कितने जनम बीते ये जंग रुकती क्यों नहीं?
ये कैसी भंग है इसकी लत जाती क्यों नहीं?
क्या हम कोई मशीन हैं जो लड़ते ही रहेंगे?
समझदारों जैसे शराफ़त से रहते क्यों नहीं? 

हर ज़माने में कुछ अक्लमंद भी होते रहे हैं
वो समझदारी से बिना लड़े रहते भी रहे हैं
कैसे रहना चाहिए इस बाबत बताते रहे हैं
फ़िर ये कौन हैं जो माहौल बिगाड़ते रहे हैं?

क्या ये वो हैं जो बाज़ुओं को फ़ड़काते रहते हैं?
या बिला वजह अपनी मूंछों को मरोड़ते रहते हैं?
या मूंछें न हों तो ज़ुबान से कुश्ती लड़ा करते हैं?
ग़रज़ ये कि अपनी अहमियत को गिनाते रहते हैं?

उन्हें एक बार देखना होगा उगते हुए सूरज को
नीले आसमान में उड़ते हुए  रंगीन परिन्दों को
वो दूर दिखते हुए पहाड़ों की ऊंची चोटियों को
और आहिस्ता आहिस्ता से बह रही दरिया को।

ग़ौर करना होगा उन्होंने बनाया है क्या क्या?
परिंदे, पहाड़, फ़लक में से गढ़ा है भला क्या?
 सूरज को उगना सिखाया या हवा को बहना?
इन नायाब तोहफ़ों में उनकी•शराकत है क्या?• योगदान

जनाब ये ख़ज़ाना बिना मांगे मुफ़्त में मिला है
ये सुकूत भीऔर सुकून भी सौग़ात में मिला है
और आप हैं कि जंग में इसे बरबाद कर रहे हैं
आप बहुत बड़ी एहसान फ़रामोशी कर रहे हैं।

ग़ुरूर छोड़ कर बनाने वाले की तारीफ़ कीजिए
जिसने बख़्शा है उसका शुक्रिया अदा कीजिए
लड़ना झगड़ना छोड़ के सुकून से रहना सीखिए
ये करिश्मे हैं इन्हें देख कर  मुस्कुराना सीखिए।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।




Monday, October 26, 2020

बता न

ग़र तू पुकारेगा, राधा आएगी कि नहीं
ग़र तू नचाएगा, राधा नाचेगी कि नहीं
एक दीगर ज़ुबां है जो•दीदावर समझते हैं• जौहरी
ग़र तू मुस्कुरायेगा, इबादत होगी कि नहीं।

उम्र घटती जा रही, हवस घटती क्यों नहीं
•तीरगी बढ़ती रही, चिराग़ जलते क्यों नहीं• अंधेरा
इबादत की इन्तिहा, कभी होती है नहीं
वक़्त थम जाएगा, गर्द होता क्यों नहीं।

झुरमुट से झांके चांद, सब देखते क्यों नहीं
वो बेपर्दा हो रहा, हिम्मत दिखाते क्यों नहीं
मांगा था तू ने एकबार यशोदा से इसे कभी
नज़ारा नफ़्से नज़र, नज़र उठाते क्यों नहीं।

चंदन का•सुतून मैं, तू काटता क्यों नहीं• तना
•तिल्ला का डला मैं, तू गलाता क्यों नहीं• स्वर्ण
तू ही तो मुकद्दर है मेरा, मैं हूं तेरे हवाले
•बावर नहीं है ग़र, आज़माता क्यों नहीं।• यक़ीन

जब से देखा है तुझे, होश आता क्यों नहीं
तू आफ़ताबे नूर, सब को दिखता क्यों नहीं
तू तो है मेरा•बातिन , मैं पड़ा हूं ख़ाक़ में• अंतर्मन
ये सब माजरा क्या है, तू बताता क्यों नहीं।

वो दिन जो कभी थे, वापस आते क्यों नहीं
वो सरगोशियां, शोखियां, वापस आते क्यों नहीं
क्या ऐसी ख़ता हुई, जो इतनी सज़ा दे दी
छोड़ा जो तुमने एक बार, वापस आते क्यों नहीं।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।



Friday, October 23, 2020

Flower Children*

Weeds and beads
Crystals and pistols
Life is a big bawl of pot
Swim across the top
Of Niagara falls.

Turn on, tune in
Blow your brain
Hook onto escape
From the rat race
To nirvana.

Go grass-happy
Pull your eye balls
So they can see
Colors suspended
On the air.

Get stoned
For the last great high-up
In the sky
Pace
Hasan Sabah, the pagan.

SKY-SCRATCHERS

Sinews tightened grip,
Earth loosened her loins.
Stalactites jut out
Skyward
A jungle of iron and concrete.
Blood and iron mix well
To mummify glory
And fossilize ambition.

* Reprinted from Youth Times (defunct)1976 October 15-28.

Om Shantih
Ajit Sambodhi.

Thursday, October 22, 2020

मुझे तुमसे मिलना है

तुझको पाने के लिए लोग मशक़्क़त करते हैं
परस्तिश  भी करते हैं , ज़ियारत भी  करते हैं
जहालत की  भी ख़रीद ओ फ़रोख़्त  करते  हैं
ख़ुद को ढूँढे बग़ैर मगर, तुझको ढूँढा  करते  हैं।

तुझे पता नहीं कैसे मिलती चाहत मुझको?
तुझे पता नहीं कैसे मिलती  राहत मुझको?
ज़िन्दगी एक  वीरान  चुलिस्ताँ  बन जाती
तेरी  मुस्कान  न देती ग़र  ताक़त  मुझको!

दर्द कमतर नहीं होता  दर्द दुनिया  बदलता है
दर्द क़ालिब है कि  जिसमें हर कोई ढलता है
दर्द धरती  का देखकर , बादल  सिसकता  है
धरती जब जब  तड़पती  वो रो रो  बरसता  है।

सूरज   है   करता , इन्तिज़ार   सुबह   का
शबगीर   को  रहता , इन्तिज़ार   रात  का
किसी ना किसी का हर किसी को इंतिज़ार
आख़िर   है   भूखा   हर   कोई   प्यार   का।

निकले जो बात दिल से सुनता है दिल ठहर के
साँसें  भी ठहर  जातीं , आँसू भी ढलते  रुक के
घबरा  के  ग़मों  से  कभी  मायूस  न  हो  जाना
बरसेगी  उसकी रहमत  थोड़ा  सा ठहर  कर के।

मुझे तुमसे मिलना है  तुम समझते क्यों नहीं?
बहुत कुछ  कहना है  तुम समझते क्यों नहीं?
माना कि मैं अहमक मगर तुम तो आलिम हो
मुझे ख़ुद से मिलना है तुम समझते क्यों नहीं?

मशक़्क़त= मेहनत।परस्तिश = पूजा।
ज़ियारत= तीर्थयात्रा।जहालत = बेवक़ूफ़ी।
ख़रीद ओ फ़रोख़्त= ख़रीदना और बेचना।
चुलिस्ताँ= desert devoid of any oasis.
क़ालिब= ढाँचा। शबगीर= रात में गाने वाला पक्षी।
अहमक= बेवक़ूफ़।आलिम= ज्ञानवान।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, October 21, 2020

मैं और तुम

मैंने सोचा न था और ये क्या हो गया
हस्बे आदत जब तुमपे फ़िदा हो गया
मैं तो ज़र्रा था बिस्मिल बियाबां का
तुमसे मिलकर के मैं आसमां हो गया।

 क़तरा ए आब को जब होश हो गया
तेरी पुश्तपनाही से वो समंदर हो गया
ये मेरी चाहत थी या तेरी नियामत
तुझसे मिला 'मैं' और रफ़ा हो गया।

मैं सफ़ा से मिला और सफ़ा हो गया
दर्द मुझसे मिला और दफ़ा हो गया
वो वाक़िया फ़िर अफ़साना हो गया
ख़फ़ा मुझसे मिला नाख़फ़ा हो गया।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Monday, October 19, 2020

वो

उसका नाम है दिलकश तू पुकारता क्यों नहीं
वक़्त फिसला जा रहा तू सम्हलता क्यों नहीं
क्यों बैठा है मायूस•मुकैयद के मानिंद • कैदी
वो तो आता है यक़ीनन तू बुलाता क्यों नहीं।

उल्फ़त है दरकार तो फ़िर बांटता क्यों नहीं
निशाना लगाना है तो•सहम छोड़ता क्यों नहीं • तीर
उसको मनाना है तो दर पे जाता क्यों नहीं
ये तो रिवाज़ है उसको निभाता क्यों नहीं।

मयूरा की तरह श्यामघन रटता क्यों नहीं
मीरा के मानिंद कृष्ण पुकारता क्यों नहीं
दीन के हैं दीनानाथ तू समझता क्यों नहीं
सुदामा के सखा को पहिचानता क्यों नहीं।

उसका दीदार पाने की चाहत करता क्यों नहीं
जज़्बा दिखाने की हिम्मत जुटाता क्यों नहीं
दम भरता था अपनी मुहब्बत का हरदम
अब मुहब्बत को हक़ीक़त बनाता क्यों नहीं।

दुनिया है फ़ानी हक़ीक़त पसंद क्यों नहीं
लोग आते हैं यहां मगर ठहरते क्यों नहीं
समझने की तमन्ना है अगर इसके बारे में
दस्ते रहबर कोई तलाशता क्यों नहीं।

रास्ता न बदलेगा ख़ुद को बदलता क्यों नहीं
अहमियत को नज़रंदाज़ करता क्यों नहीं
क्यों औरों को बनाता है रहनुमा अपना
उसकी ख़्वाइश के मुताबिक ढलता क्यों नहीं।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Sunday, October 18, 2020

अपडेट्स

चंद्र टरे सूरज टरे, टरे न कोविड ज्ञानी
मंत्री,तंत्री,संत्री, उतरा सबका  पानी।

कबिरा खड़ा बजार में, पूछति है सब काहि
घणो ढिढोरो•कोविद को, मोहे दीखत नांहि।• ज्ञानी

अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है, ऐसी सुविधा और कहां है
पानी कोसों दूर है तो क्या, शौचालय बन गया यहां है।

चलती चक्की देख के लोग भये बेहाल
पीसनहारी पिस गई, बाकी करें मलाल।

ऊंचा पेड़ खजूर का, फल लागे अति नीक
पल में ऊपर चढ़ गया, फल खावे निर्भीक।

कबिरा सूता का करे, जागतऊ सोवो करे
जो चावे अमरित चखन, सूतोऊ जागण करे।

कांकर, पाथर जोड़ के, ठाकुरद्वारा लियो बनाइ
घंटा भेरी बज रहे, क्या बहरे हैं ठकुराइ।

निंदक नियरे राखिये, फिर कोई चिंता नांइ
देख मलाई निंदा करे, अपनु मलाई खांइ।

माटी कहे कुम्हार से, हम दोनो तो एक
किरपा देखो राम की, बासन बने अनेक।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
धंधा चौपट कर लिया,क्या करना है अब ? 

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट
कंजूसी मत ना करो, घड़ा भरन की छूट।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।





Saturday, October 17, 2020

बरज़बाँ लम्हा

भूले से सुलूक जो तुम से मिला है
 उसी के सहारे मैं जीता रहा हूँ 
सफ़र में अकेला ही चलता रहा हूँ 
तुम्हें याद मुसस्सल मैं करता रहा हूँ।

कहीं कोई आवाज़ देता नहीं है
कहीं से कोई भी बुलाता नहीं है
ग़मे दिल से है ये अजब दोस्ती
मुझे छोड़ कर वो जाता नहीं है
तमन्नाएं ख़ाक होती रही हैं
उसी ख़ाक को मैं उड़ाता रहा हूँ।

क्या मुमकिन नहीं फ़िर से आवाज़ दे दो
दर ए वाक़िफ पे फ़िर से दस्तक दे दो
रुख़ पे तेरे मैं मुसर्रत ला दूं  हँसी
इतनी इजाज़त तो मुझको भी दे दो
दामन पे तेरे लगाया न दाग़
हर लम्हा हिफ़ाज़त से रखता रहा रहूँ ।

क्या मुमकिन नहीं भूलना तुम भुला दो
क्या वाजिब नहीं फ़ासला तुम मिटा दो
मेरी बदनसीबी को मक़सद बनाना
तुम्हें हक है लेकिन ख़ता तो बता दो
तेरी आँख से कोई शबनम न टपके
आसमाँ से दुआ माँगता मैं रहा हूँ।

मैं तनहा रहूँ, रास आता क्या तुमको
दिल को दुखाना क्या भाता है तुमको
मुझको यकीं है कि ऐसा नहीं है
ख़ुदारा बतादो क्या भाता है तुमको
तुमको समझने में नाकाम हूं मैं
भरपूर कोशिश मैं करता रहा हूं।
* हर वक्त ज़ुबान पर रहने वाला

ओम् शान्ति: 
अजित सम्बोधि।

Friday, October 16, 2020

सुबह का चिराग़

रात ख़ामोश है, एक सितारा चमक रहा है
वक़्त की इनायत है, साथ लिए चल रहा है।

ज़िंदगी ग़र यूं ही चलती रहे, तो क्या हर्ज़ है
हां, वक़्त की ताबीर करना, तो मेरा फ़र्ज़ है।

मालूम नहीं , वफ़ा का दर्द से क्या रिश्ता है
हां ये मालूम है कि बेवफ़ाई से दर्द रिसता है।

कुछ लम्हे चुनने भर से ज़िंदगी नहीं बनती है
लम्हों को लम्हों में पिरोने से , ज़रुर बनती है।

क्या कुछ न हो जाता, एक ख़्याल आने भर से
आसान नहीं होता जीना, ऐसी आमदोरफ्त़ से।

किसी ने पूछा क्या मुमकिन है सितारों को छूना
मैंने कहा सितारों से पूछा उन्हें पसंद है ये छूना? 

मुझे क़तई मालूम नही, कि कैसा सबेरा होता है
मैं तो जब जगता हूं तो, चिराग़ जलाना होता है।

तसव्वुर में आने से कभी दूरियां कम नहीं होती
हां, मगर ये दख़लंदाज़ियां बेमानी भी नहीं होती।

बेमुरव्वती और•बेरिया शिकस्तों में दूरी होती है • निष्छल
एक से रंज होता और दूसरी से शतरंज होती है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


Thursday, October 15, 2020

जंगजू

लोग लड़ा करते हैं , बख़ूबी लड़ा करते हैं
 कोई बैरी नहीं हो तो पैदा किया करते हैं
कुछ सजधज के पहिन वर्दी लड़ा करते हैं
कई जोशीले तो , बिला वर्दी लड़ा करते हैं।

लड़ाई एक•मौजू है जिसे लोग पढ़ा करते हैं •विषय
बड़ी•शिद्दत से लड़ने की अदा सीखा करते हैं • मेहनत
ये लड़ाई बड़ी काम की चीज़ हुआ करती है
अगर ये ना हो तो लोग नाकारा हुआ करते हैं।

कुछ लोग•फ़रीक़ ए इंसाफ़ बन लड़ा करते हैं • वादी
और कुछ नाइंसाफी की, बाजी लड़ा करते हैं
लड़ने वालों में लखनवी बांके भी हुआ करते हैं
वो कमज़ोर दिलों का हौसला बढ़ाया करते हैं।

कोई उन्हें जांबाज़ तो कोई जांनिसार कहता है
कोई जंगजू तो फ़िर कोई , पहरेदार कहता है
जंग चलती रहे ताकि , तवारीख़ रुक न जाए
हरेक उन्हें अपने फ़िरके का•हिसार कहता है।• अभेद्य

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, October 14, 2020

बे हिसाब का हिसाब

इस हिसाबी दुनिया में, सब हिसाब लगाते जाएंगे
मेरा हिसाब तेरे हवाले , तेरी उंगली थामे जाएंगे।

यहां पर जो•शै बनी , बिगड़ने को ही बनी •वस्तु
ये देखकर भी हर शै, हम•ख़ूबतर बनाएंगे।• बेहतर

कभी नहीं कोई हुआ किसी का इस जहान में
ये जानकर भी दामनगीर , ख़ूब हम बनाएंगे।

बुझे बुझे हैं दिल यहां, ज़ेहन में है धुआं धुआं
ऐसी तीरगी में भी , हम चराग़े•उंस जलाएंगे।• प्यार

मुमकिन है मेरी बात , समझ पाये ना कोई
है बात काम की अगर, हम गीत बनके गाएंगे।

गूंज बनके मेरे गीत, गूंजेंगे जहान में
चाहे कोई ना सुने,•हक़ को हम सुनाएंगे।• ईश्वर

जिसका है ये जहां , उसको ये बता दिया
बे हिसाब के हिसाब , से हिसाब लगाएंगे।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Tuesday, October 13, 2020

Right ?

Laugh at yourself, if laugh you can
That's a sure way, your ego to scan.

If fair don a cloak; if clever be a joke
What's fair to poke ego, if not a joke?

Don't be fast, fast tires fast
And ends up , past the last.

Go slow, let go; that's the ticket to grow
Life is a flow;rapids flounder, don't flow.

Be not afraid however long the tunnel
See the light , at the end of the tunnel.

Lie low to stand up
Be empty, to fill up.

Back straight, think straight
Never die, to become great!

Surrender, it's never too late
To Him,the smallest is great.

Soft surpasses brusque
Trunk outdoes the tusk!

Anger is  hunger for pride
Ride it to guide your stride.

Desire and sorrow , are sisters great
Tell your remote to ask them to wait.

There's nothing ever great about hate
Instead , trade it up for love , straight!

What I write , I write to tease my mind
Dear Reader, read it to read your mind.

Om Shantih
Ajit Sambodhi.


Monday, October 12, 2020

तेरा दर्द मेरा भी दर्द है

तेरा दर्द  मेरा भी  दर्द है, अब  कैसे  इस को  नकार दूँ 
जोहै मिल गया मुझे भूलसे, उसे क्योंन दिलमें पनाह दूँ ।

तुझे याद हो कि न याद हो, मुझे याद है वो वाक़या
बिन हुए  सब  हो  गया, अब  कैसे  कर  इनकार दूँ।

क्या  बात  ऐसी  हो  गई, हर  सिम्त  जैसे  खो  गई
फ़िज़ा ने जिसको भुला दिया, मैं क्यों न उसको सँवार दूँ।

ये जो रात दिन का  मेल है, ये भी आश्ना का  खेल है
जब आसमाँ ही झुक गया, मैं क्यों न उसको ज़बान दूँ।

मुझे क्या पता मेरी  ज़िंदगी, अभी कैसे गुल  खिलायेगी
जो शिगाफ़ बन के सता रही, उसे क्योंन सीने में दफ़्न दूँ।

तेरा  राज़ मेरा  भी राज़  है, पर  रास्ते  हैं बदल  गये
जिसे हम निभा पाए नहीं, उसे क्यों न राज़ ही रहने दूँ।

मैं फ़र्द इक  मारा  हुआ, और तुम  तजाहुल  हो गये
ग़र वक़्त इक महबूब है, मैं क्यों न उसको ख़िफ़ार दूँ।

ये जुस्तजू मुझे  बारहा, हमज़ात  बनके  मिटा गई
जो बनके बिगड़ती रही, उस नक़्श को क्या नाम दूँ।

सिम्त= दिशा। आश्ना= याराना। शिगाफ़= दरार।
फ़र्द= शख़्स। तजाहुल= दोस्त का अनजाना बन जाना।
ख़िफार= वचन। जुस्तजू= तलाश। बारहा= बार बार।
हमज़ात= एक ज़ात।नक़्श= तस्वीर।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Sunday, October 11, 2020

अपना दर्द मुझे दे दे

हो सके तो इक इक इंसान का दर्द मुझे दे दे
मेरी दरख़्वास्त है तू अपना दर्द भी मुझे दे दे।

गुलाब के मानिंद किसी की ज़िंदगी महका सकूं  
 रहम कर के अपने चमन का इक•वर्द मुझे दे दे।•गुलाब

ज़िन्दगी की बाजी हार के, मायूस हुए बैठे हैं जो
पासा पलट दूं क़िस्मत का उनकी,•नर्द मुझे दे दे।•गोटी

तू ख़ालिक है जहां का, तुझे क्या राहत न चाहिए
ऐ कर्दगार मेरी इल्तज़ा है, कुछ•कर्द मुझे भी दे दे।•काम

जो मांगा है न दे सके तो इतना ही कर दे, मुनव्वर
तेरे प्यार में पागल है जो, वापस वो•फ़र्द मुझे दे दे।•इंसान

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Saturday, October 10, 2020

भगवान और भला इंसान

एक पुराना•मक़ूला है:भोले में भगवान  •adage
ऐसा ही एक और है: भोले के भगवान
अब भगवान तो कहीं नज़र आता नहीं
क्या इसलिए दिखता नहीं भोला इंसान?

भोला होता•ग़ज़ाला, बिल्कुल मस्तमौला •हिरन का बच्चा
हावला बावला वो , जानता न•रामरौला। •हल्ला मचाना
वो तो धोखा खा खा के भी रहता भला
हक़ताला का ख़ादिम, वो सुहेला•औला। •परमोचित

इस मक़ूले से आपका पड़ा होगा वास्ता
जब आप उलझन में थे, ख़ुदा न ख़ास्ता
समझ में न पड़ा होगा कि अब क्या करें
कोई भला इंसान आगया, बताया रास्ता।

ख़ज़ाना तो बिखरा पड़ा है, भगवान का
आप नहीं मानते हैं तो बतादें है किसका
हर फूल में मौजूद, रंग भर रहा रंगरेज़ है
नहीं दिखता है फ़िर तो फ़र्क़ है नज़र का।

भगवान से मिलना है, भला इंसान देख लो
जिसकी नज़र में न कोई बुरा ऐसा देख लो
ज़ियादह ज़हमत न उठाना तलाश करने में
तुम्हारे दिल में बैठा वो, बात करके देख लो।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


Friday, October 9, 2020

लमहात का ख़्याल रखना

हाँ हर पल जीना, होश में रह कर जीना
ख़ुद सम्हल के, इन्हें सम्हाल कर जीना।

बड़ी मुश्किल से मिले हैं, इन्हें खो न देना
बेशकीमती हैं, कभी इनको भुला न देना।

कोई नज़रें चुराये, फ़िर भी मुस्कुरा देना
कभी ना मुराद होकर, बस रो मत देना।

कि वो ही पहल करे, ये भी ज़िद न करना
ख़ुद ही चले जाना, लमहे न ज़ाया करना।

वो दिल में उतर गये, और क्या जो करना
हस्बे आदत, लमहात को सजा के रखना।

मायूस रहूँ कोई हर्ज नहीं, मुझे मासूम ही रहने देना
ज़िंदगी इतना रहम करना, मुझे इंसान ही रहने देना।

मुझे तारीकी से डर नहीं, मगर उजालों में रहने देना
मैं ग़ुलूकार नहीं तो क्या, बस मौसिकी में बहने देना।

मैं क्या माँगूँ, मुझे है पता, तेरा बिना माँगे ही दे देना
लगता है जैसे तेरा काम है सिर्फ़ बख़्शीश का देना।

तारीकी=अँधेरा। ग़ुलूकार =गायक। मौसिकी=संगीत।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, October 8, 2020

Being Prayerful

A flower is cheerful, for it is prayerful
A dumb stone can give tears plentiful.

The prayerful man is a truly lonely man
He fears falling not failing, he is human!

His prayer is his longtime lifeboat
Even if he fails, it keeps him afloat.

Forget not that prayer is his poetry
Hope you know, where lives poetry.

Poetry is born of the pining heart
And so it touches a longing heart.

When mind and lips end their play
It is the soul which begins to pray.

Prayer never begs,it always grants
Gracious solace and bonny chants!

Om Shantih
Ajit Sambodhi

Wednesday, October 7, 2020

Measure of Grace

Measure of grace
Is patience, not race.
Measure of patience
Is gratitude in silence.

Measure of triumph
Is peace, not trophy.
Measure of attainment
Is silent contentment.

Measure of rapture
Is void, not treasure.
Void is not an abstraction
It has tenor 'n' complexion.

Don't try playing smart
Him you can't outsmart.
Simply bare your heart
To win His loving heart.

Don't ever smother yourself
With bouts of unhappiness.
Help comes unexpectedly
In the hour of helplessness.

Om Shantih
Ajit Sambodhi

Tuesday, October 6, 2020

The Only Temple

The only temple there is , is inside
Silent and serene, like a new bride.

Shy it is , of public's wanton gaze
Ash covered it lies in a secret blaze.

Although smaller than the smallest
Surely , it is bigger than the biggest.

As it is much nearer than the nearest
So it is much farther than the farthest.

Resplendent it is like midday sunshine
Even as nactarean it is like moonshine.

Tread softly, like the morning breeze
That livens your neighborhood trees.

Talk,yes talk, if talk you must
But let it be, to test your trust
In the nuzzles and cuddles of birds
And the whispers of floating scuds.

Try to experience the presence
That masquerades as absence.

When silence is deep,it becomes tangible
It is the echo from God, never , intangible !

Om Shantih
Ajit Sambodhi.

Retold : 'one night I had a dream'

I dreamt I was walking with God 
like we were two best friends.
As we went along we made two sets of
footprints on the sands.
I enjoyed His company for He was good
at telling funny stories
Of ancient peoples and lands that were
full of strange glories.
Meanwhile the scene shifted and I saw
we were at a different place.
I looked back over my shoulder to find
that there was no trace
Of the second set of footprints many a
time at many a place.
Those were the times when I was sad
and needed His grace.
I questioned God why He deserted me
 when I needed Him most?
He looked at me so lovingly, my heart went out for Him and I cried, almost.
He said:"My child I lifted you up, in my arms when you needed me most".

Om Shantih
Ajit Sambodhi

Monday, October 5, 2020

शिकायत

ख़्वाबों की सीढ़ी चढ़ कर,हम शीशमहल तक पहुंच गए
वक्त ने दामन छुड़ा लिया तो काचके माफ़िक बिखर गए।

हमने अपने सपने चुन चुन, पलकों में थे ख़ूब संजोए
क़िस्मत ने नज़रें फेरीं तो, मोती बन कर बिखर गए।

अपने दर्द के साथ ही हमने, अपनाया था दर्द भी तेरा
तुम क्या नहीं अकेले मुझ सम, फ़िर कैसे यूं दूर हो गए।

जिस दिन तुमने क़समें तोड़ीं, उस दिन हम भी टूट गए
ख़ंजर क्यों ऐसा मारा , कि सारे मंज़र बिखर गए।

सांसों में और आहों में क्या फ़र्क़ है अब हम भूल गए
देख लो आकर के कैसे , शाख से पत्ते बिखर गए।

ऐसी भी क्या मज़बूरी है ज़ुबां पे बंदिश लगा के बैठे
इख़लास के धागे अब आकर कैसे अचानक टूट गए।

अपनी फ़िक्र के साथ ही मुझको तेरी फ़िक्र सताती है
क्या होगा ग़र हया के चलते , तुम भी ऐसे टूट गए।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।