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Saturday, January 30, 2021

CAVE MEN

Some say we are all cave men
living on a different time scale,
assembled here on purpose
to release an urge against obscurity.

if what they say is true,
true too, here is where,
the mind commits suicide
to recoil from tyranny of thought.

looking back over the shoulder
progress appears a sad affair---
past catches up with us to reveal
a false front--- surely we believe

living on underbellies and bosoms,
sucklings ever, getting sucked
incessantly into the womb, seeking
vomit of eternity in endless embrace.

we move on knees, head buried
populate the planet, driving god
into backwoods, scare him
shouting messages into the moon.

we have made up our mind
to shove what is left of sanity
into the void, words conspiring
with thought to frame half-echoes.

Reprinted from YOUTH TIMES (defunct)1978 January 20-- February 2.

Om Shantih
Ajit Sambodhi.

Wednesday, January 27, 2021

लौ !

जो बीत गया, वह गत है
जो बचा, वह अनागत है।
दोनों के मध्य में गमत है
उसे पा लेना, अज़मत है।
वहीं पर गति को विराम
मन को अविरत विश्राम।
इंसान की जो हिक्मत है
उसी से , ख़ुशकिस्मत है।

मध्य में मख़्फ़ी ख़ते अमूद
उसी में मौजूद है वो ख़ुलूद
उस ख़त• के सहारे उतरें तो 
मिला करेगी मंज़िले मक़्सूद
वहां न तेल न बाती न दीपक
बस 'लौ' है , देखिए अपलक !
'लौ' से जैसी होएगी , निस्बत
वैसी रब से हो जाएगी रग़बत।

गमत= रास्ता। अज़मत= गौरव।
मख़्फ़ी= अद्रष्य। ख़ते अमूद= खड़ी रेखा।
ख़ुलूद= नित्यता। मंज़िले मक़्सूद= goal.
निस्बत= nearness. रग़बत= लगाव।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।






Sunday, January 24, 2021

इज़हार ए तौफ़ीक़

तुझे अपने दिल में बसाए चला हूं
तुझी से ये दुनिया सजाए चला हूं।
जो दिल में सदा ही छिपाए रहा हूं
ख़ुद अपनी ज़िद से बताने चला हूं।

तेरी याद जब से , लेकर  चला हूं
हरदम नया कुछ , पाता चला हूं।
रिश्ता जो तुमसे , पुराना रहा है
उसे जग में ज़ाहिर करने चला हूं।

मैं मरज़ी से तेरे , माफ़िक चला हूं
जो तूने है चाहा वो करता चला हूं।
जो तेरी रज़ा थी , वो मेरी रही है
यही बात सबको , बताने चला हूं।

घबरा के मैं महफ़िलों से चला हूं
दुनियावी बातें बिदा कर चला हूं।
मेरे हाल पर ही मुझे छोड़ दें सब
गुज़रा हुआ छोड़ कर के चला हूं।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, January 6, 2021

तिलोपा ने कहा था

तिलोपा ने नरोपा से कहा था, तुम बांस हो जाओ 
जैसे बांस खोखला होता है,तुम खोखले हो जाओ।
तुम उसे पा नहीं सकते हो, कभी अपने प्रयासों से
वही आयेगा तुम तक, तुम तो बस तैयार हो जाओ।

तुम एक कण मात्र हो उस पूर्ण के, उस अनन्त के
कुछ नहीं मिलेगा तुमको, नाहक दुस्साहस करके।
तुम से बस अपेक्षित है,तुम स्वयं को खाली कर दो
ताकि वह उतर सके, तुम में, बिना किसी बाधा के।

जब वह अनन्त चैतन्य तुम्हारे अन्दर उतर आयेगा
तुम्हारा हर विचार तुमको त्याग कर, चला जायेगा।
विचार ही से क्रोध, लालसा, मत्सर उपजा करते हैं
विचार बिना तुम कहाँ, सब चैतन्य मय हो जाएगा।

आँखें जब बन्द करोगे, उधर दरवाज़ा खुल जायेगा
चैतन्य प्रकाश रूप में , प्रवाहित करने लग जायेगा।
तुम बनोगे खोखली बाँसुरी, वह बजाने लग जायेगा
स्वर्गिक संगीतमय लहरी तुम्हें , सुनाने लग जायेगा।

कौन बहाता है नदी को, कौन सागर में गिरा रहा है?
कौन चलाता है चाँद को, कौन तारों को घुमा रहा है?
वह करता है इसीलिए चाँद तारे नदी सागर सुंदर हैं
फूल भी सुन्दर हैं क्योंकि वह ही उन्हें खिला रहा है।

जब तुम करते हो तो, संत्रास का उद्घाटन हो जाता है
मन भय ईर्षा मद स्पर्धा क्रोध से आक्रान्त हो जाता है।
हर वक्त मन रहता काँपता, अनिष्ट का डर लगा रहता
उसकी सुन्दर सी बगिया का,कैसा रूप बदल जाता है।

तुम हो लेशमात्र और संपूर्णत्व की करते हो अवहेलना
स्वयं को ही समझने लगे नियंता, ये कैसी है विडम्बना?
उसका जगत कितना सुन्दर है, शून्य बनकर समझना
वह कितना मधुर गाता है, बाधा न बनना, फ़िर सुनना।

जीवन जैसा है अति सुन्दर है, वह नहीं कोई समस्या है
समस्या है तो तुम्हारी हल करने की कोशिश समस्या है।
जीवन धारा बह रही है, बहाने वाला बहाता जा रहा है
तुम बांस बनकर बहते रहो, फ़िर नहीं कोई समस्या है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।



Saturday, January 2, 2021

मौलुकपुत्त और बुद्ध

मौलुकपुत्त एक अभूतपूर्व जिज्ञासु था
बुद्ध के पास ग्यारह प्रश्न लेके गया था।
तुम्हारे हरएक प्रश्न का उत्तर मैं दे दूंगा
यदि एक वचन दे दो, बुद्ध ने कहा था।

मौलुकपुत्त ने कहा था, वह कटिबद्ध है
आप कृपया बताएं वचन जो भी देना है।
बुद्ध ने कहा था उसे, पुनर्विचार कर लो
ताकि फ़िर न कहना पड़े, संभव नहीं है।

भन्ते ! मौलुकपुत्त एक क्षत्रिय का पुत्र है
वचन देकर न निभाना निपट असंगत है।
मौलुकपुत्त ने इस तरह बुद्ध से कहा था
पुनः पूछा बताएं, मुझे क्या वचन देना है? 

बुद्ध ने कहा था,दो वर्ष तक प्रतीक्षा करो
यहां मेरे पास ही शान्त बन कर रहते रहो।
दो वर्ष पश्चात अपने सभी प्रश्न पूछ लेना
मैं अवश्य उत्तर दूंगा,  निश्चिंत होकर रहो।

क्षात्र धर्म के हेतु प्राणोत्सर्ग स्वाभाविक है
वह एक क्षण में होजाता है, अतः सुगम है।
परन्तु उत्तर जानने के लिए इतनी प्रतीक्षा ?
पर वह वचनबद्ध था, बोला वह सन्नद्ध है।

एक प्रातः जब दो वर्ष का समय बीत गया
बुद्ध ने कहा था, प्रश्न पूछो, समय आ गया।
मौलुकपुत्त बुद्ध के चरणों पर गिर पड़ा था
आपका उपक्रत हूं, बिना मांगे सब दे दिया।

प्रश्न तो चलायमान मन में ही उठा करते हैं
जब तक विचार श्रृंखलाएं है, उठते रहते हैं।
एक दिन आता है जब विचार थम जाते हैं
शून्यता के भाव में प्रश्न गिरते चले जाते हैं।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।