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Sunday, December 20, 2020

सिकन्दर ए आज़म और डायोजिनीज़

सिकन्दर एक जाँबाज़ जंगबाज़ था
वो जब सिर्फ़ इक्कीस बरस का था
उसने सारी दुनियां जीतने की ठानी
वो अरस्तू का ख़ास शागिर्द रहा था।
डायोजिनीज़ से मुलाकात कर लेना
जाते वक्त, अरस्तू ने उससे कहा था।

इसलिए सिकन्दर मिलने को गया था
डायोजिनीज़ रेत पर धूप सेंक रहा था
सर्दी का मौसम था , वह नंगा पड़ा था
उसका कुत्ता भी लेटा , धूप ले रहा था
सिकन्दर बोला, मैं सिकन्दरे आज़म हूँ 
डायोजिनीज़ बड़े ज़ोर से हँस पड़ा था।

उसने कुत्ते से कहा, ये•आज़म कहता है•महान
ख़ुद को,अपनी तारीफ़ ख़ुद ही करता है।
सिकन्दर का हाथ तलवार पर चला गया
फ़क़ीर हँसा, बोला, अरे ये  क्या करता है
यहाँ कौन है जिस पे तू तलवार चलायेगा
क्या•ज़िन्द ए जावेद को तू मार गिरायेगा?•अविनाशी

सिकन्दर ए आज़म हक्का-बक्का हुआ था
वो अब तक ऐसी शख़्सियत से मिला न था
सभी उसके सामने झुक कर मिला करते थे
और यह फ़क़ीर नंगा, मगर शान से पड़ा था
सिकन्दर बोला माँगो, जो चाहते हो, पाओगे
फ़क़ीर बोला, ज़रा हट जाओ, धूप आने दोगे?

कुछ देर हुई सिकन्दर बोला:मुझे अब जाना है
फ़क़ीर ने पूछ लिया : अच्छा तो कहाँ जाना है?
•आलमे शहूद फ़तह करने को निकला हुआ हूँ •दुनिया
वो बोला: अच्छा तो उसके बाद क्या करना है
फ़क़ीर ने पूछा ? उसके बारे में बाद में सोचूंगा
सिकन्दर ने बताया, शायद मैं आराम करूगा।

फ़क़ीर फ़िर से हँसा, अपने कुत्ते से कहने लगा
सुनले, ये दुनिया जीत लेगा,फ़िर आराम करेगा
अपुन बिना दुनिया जीते भी आराम कर रहे हैं
अरे सुन ले हमारे झोंपड़े में तू भी समा जाएगा
आजा आजा, छोड़ ये झंझट, अब कहाँ जाएगा
सिकंदर: डायोजिनीज़ नहीं मैं, नहीं हो पाएगा।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।



Thursday, December 17, 2020

IS THAT SO ?

Hakuin Zenji was known for his piety
He attained satori at the age of thirty.
He became Master at the age of forty
He was distinguished for his propriety.

Once it happened that a girl who spent
Time with him, found she was pregnant.
Questioned by parents who the man is
Amazingly she named the saint , errant.

Enraged parents reproached the monk
Called him names, said he was a bunk.
The monk bore the allegations calmly
He neither okayed, nor did he debunk.

When pressed hard,he said: is that so?
Mad, they abused. He said : is that so?
For parents it meant:do you think I'm so?
While he was asking his guide: is that so?

After a time, girl mother delivered a child
Parents went to the monk, gave the child.
It's your child, look after him, they advised
The priest said nothing and took the child.

So now the monk had to find food for two
It was a hard time,he was passing through.
Mostly it was barbs he got,in place of alms
He had no option,except to intently persue.

It is often very trying to bring up a suckling
He was not made for this, nor had training.
Sometimes the child would holler all night
He would be at his wit's end. It was taxing.

The girl mother could stand it no further
So she disclosed the identity of her lover.
He was fish market help,she told parents
Parents rushed to the saint helter skelter.

They caught hold of his feet and repented
They begged his forgiveness and lamented
They requested him to hand over the child
The saint was silent, their wish he granted.

Throng gone, saint looked out the window
And once again, he muttered: IS THAT SO?
He asked his inner guide:what is this joke?
More jokes in pipeline,he smiled,is that so?
                                      story: courtesy osho

Om Shantih
Ajit Sambodhi.



Tuesday, December 15, 2020

बुद्ध वाणी

बुद्ध के ऊपर किसी ने थूक दिया
बुद्ध ने उसे उत्तरीय से पोंछ दिया।
कहा, क्या कहना चाहते हो, कहो
आनन्द ने कहा, कमाल कर दिया।
जो दंड का अधिकारी है, कहते हो
उससे, क्या कहना चाहते हो, कहो।

बुद्ध ने कहा वो कुछ कहना चाहता है
आवेग तीव्र है अतः कह नहीं पाता है।
वह आदमी चला गया, घर पे रोता रहा
दूसरे दिन बुद्ध के पांव में गिर जाता है।
आनंद की समझ में कुछ नहीं आता है
बुद्ध बोले जो देते हैं, वही लौट आता है।

आदमी जो देता है, वही वापस पाता है
स्नेह देने वाला बराबर स्नेह ही पाता है।
जो देते हैं वही लौट कर के आ जाता है
कई गुना बनके फ़िर वापस आ जाता है।
न मांगने की ज़रूरत, न कुछ बोलने की
बिना आवाज़ किए ख़ुद ही आजाता है।

जब किसी के हाथ पर हाथ रख देते हो
बिना कुछ बोले, बहुत कुछ कह देते हो।
जब किसी को गले से लगाया करते हो
दिल को दिल के पास में लाया करते हो।
जो बात ज़ुबान कहने में नाक़ाबिल होती
वही इस तरह बयान कर दिया करते हो।

जब कोई आपके पांव में आके गिरता है
ये न समझ लें वो आपके आगे झुकता है।
भाषा असमर्थ है, वह बता नहीं सकती है
इसलिए वो उसको प्रत्यक्ष करने लगता है।
वह अपने ह्रदय में एकीकृत होने लगता है
और सार्वकालिक के आगे झुकने लगता है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Sunday, December 13, 2020

Being Spiritual?

A lady once said: I want to be spiritual.
I said: first thing first, leave each ritual.
Spirituality signs itself on a clean slate.
 I want to be spiritual, is but only ritual !

Spirituality vows, you go to the source
No predilections happen on this course.
You don't require any baggage to carry
To be frank, it is a very straight course !

There sits the source in all its versatility
It is all clear, with no trace of ambiguity.
All about it are its myriad manifestations
One can remain entangled in, for eternity.

Being spiritual is as easy as birdwatching
Only you have to keep your eyes smiling.
Be natural and drop away all pretensions
You will be surprised to see you, arriving!

Om Shantih
Ajit Sambodhi.

Saturday, December 12, 2020

क़ाबिले ग़ौर?

सुना है, अकबर बादशाह तालीमयाफ़्ता नहीं थे
लोग कहते हैं कि इसलिए वो अच्छे हुक्मरान थे
उन्होंने बड़े क़ाबिल लोगों को नौकरी दे रखी थी
ऐसे नौ इल्मदां थे जिन्हें वो नौरत्न कहा करते थे।

ये जो रिवायत है क़दीम ज़माने से चली आ रही है
कि नाख़्वांदगी शाइश्तगी को नौकर रखती रही है
इल्मदां इस बाबत बख़ूबी फ़क्र ज़ाहिर करते रहे हैं
कि रअय्यत हुक्मरानों की हिमायत  करती रही है।

आज भी नामचीन शाइश्तां इस बाबत ख़ुश होते हैं
कि हुक्मरान उन्हें मशविरा करने को बुलावा देते हैं
हुक्मरान की कैफ़ीयत है, हुक्म की तामील कराना
वैसे इस बाबत भी क़ाबिल रज़ाकार बुलवा लेते हैं।

क्या वाक़ई में हुक्मरान और हुकूमत की ज़रूरत है?
क्या वाक़ई सबेरा होने के लिए हुक्म की ज़रूरत है?
जब कि हम अकबर से अक्सरियत तक आ पहुंचे हैं
 क्या हमें इबादत और इत्मीनान की ज़रूरत नहीं है?

क़दीम= पुराने।‌‌ नाख़्वांदगी= अशिक्षा। शाइश्तगी= शिक्षा। क़ैफ़ियत= पहिचान। रज़ाकार= स्वयंसेवक।
अक्सरियत= बहुमत। 

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, December 10, 2020

अलविदा

आज शाम कुछ ग़मग़ीन है
बैठी है जैसे परदानशीन है
फ़िजा में चहचहाहट नहीं 
माहौल दिखता संगीन है।

दरख़्त भी ख़ामोश खड़े हैं
न हिलने को मानो अड़े हैं
कुछ ऐसा लग रहा है जैसे
वो खुले में ख़ला में जड़े हैं।  

बादलों का एक झुंड खड़ा है
ग़मामा एक निकल पड़ा है।  
पुरनम है उसका रोआं रोआं
दरख़्त के ऊपर ही खड़ा है।

ग़मग़ीन होना एक कहर है
 बेनसीबी का एक पहर है
ग़म को बुलाया नहीं जाता
वो हर वक्त हाज़िर दहर है।

अभी अभी एक मैना आई है
एक शाख़ नीचे लटक गई है
एक मैना उल्टी पड़ी है; रस्मे
रवानगी अता कर दी गई है।

ख़ला=शून्य। ग़मामा= बादल का टुकड़ा।
दहर=समय। अता करना = देना।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, December 9, 2020

नौन स्टौप सूफ़ीमनिश

ये क़िस्सा है एक ऐसे सूफ़ी फ़क़ीर का
जिसको पता मालूम था रब के घर का
रहता था नाम की मस्ती में बेफ़िक्र वो
फ़रिश्ता आया , देने इनाम पसन्द का
पूछा बताओ क्या चाहिए भला तुमको
कहा फ़क़ीर ने कुछ न चाहिए मुझको।

फ़रिश्ता बोला कुछ नेमत तो लेनी होगी
ना लेने पर तो रब की बेअदबी जो होगी
फ़क़ीर बोला, तुमने तो मुश्किल कर दी
तुम ही बता दो तुम्हारी पसंद क्या होगी?
फ़रिश्ते ने कहा मांग लो तुम्हारे छू लेने से
मरा हुआ भी लौट आएगा वापस फ़िर से।

फ़क़ीर ने कहा इसमें ख़तरे का इमकान है
किसी के भी मगरूर होजाने का कैवान है
ऐसा करो जिस पर पड़ जाए मेरी परछाईं
खुशहाली मिलेगी, कह दो कि ये फ़रमान है
मैं पीछे को मुड़कर कभी भी देखूंगा ही नहीं
फ़िर मगरूर होने का डर मुझे सतायेगा नहीं।

किस्सा कहता है फ़क़ीर तभी से दौड़ रहा है
बिना रुके मसल्सल आज भी वो दौड़ रहा है
पता नहीं कितनों को बख़्शी है ज़िंदगी उसने
वो तो बस रब्ब के प्यार में दौड़े ही जा रहा है
मुहब्बत का पैग़ाम है सिर्फ़ प्यार करते जाना
हिसाब लगाने में तो माहिर है, सारा ज़माना।

सूफ़ुमनिश= सूफ़ी मन वाला। इमकान= संभावना।
कैवान= सबसे ऊंचा आसमान। मसल्सल= लगातार।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Tuesday, December 8, 2020

चवांगतुसे

एक फ़क़ीर था, नाम था चवांगतुसे 
रात में गुज़रता था , कबरिस्तान से
अंधेरा था, कुछ टकरा गया पांव से
इंसानी खोपड़ी थी,टकराया जिससे
खोपड़ी लेकर घर आ गया, साथ में
हर लम्हे, खोपड़ी रखता था पास में।

शागिर्द ने पूछा पास रखने का, सबब
कहा,इससे मिलता है सब्र का°मशरब ° सागर
गुस्सा हो, कहता हूं अपनी खोपड़ी से
गुरूर न कर, तुझे भी मिलेगा ये°तअब ° चोट
कोई पत्थर मारे, कहता फ़िक्र ना कर
आगे या पीछे, हश्र तो ये रहेगा होकर।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Monday, December 7, 2020

Enjoying or Rejoicing?

Going distances to declare : "I enjoyed".
Sounds like a child says : "I am buoyed''.
It's fairly common : Running & Running!
Looks as if, there they live , on Steroid !

Enjoying appears to be a mischievous tab.
It says something gladdens,say a sea ebb.
It is out there and it should not be routine.
There ought to be something new, to grab.

To enjoy, there needs be objectification
Of something that invites your attention.
Say, it's the frown of a clown, in your town.
Out there, it can be anything, you mention!

Once I was questioned: 'Are you enjoying'?
I said : "I am helpless. I am just rejoicing!"
To do enjoying, you always need the other.
Even Joying appears better than Enjoying !

When you joy, it is only you who is needed.
Go for the other; in return, you are needed.
In enjoying, the joy comes from the other.
But joy is inside,it comes up when needed.

The Bible declares : Rejoice continuously!
Rejoicing in your heart is simply heavenly!
Rejoicing comprises Joying and Enjoying!
Rejoicing gladdens others, it's so benignly!

Om Shantih
Ajit Sambodhi.

Wednesday, December 2, 2020

तवक्को

रूप ढलता गया, सँवारते सँवारते
उम्र ढलती गई, विचारते विचारते
डगर खोती गई, भटकते भटकते
थक चुका हूँ, सम्हालते सम्हालते
क्या मुमकिन नहीं, तू ले सम्हाल
ग़म के साये से हमें तू ले निकाल।

रात बढ़ती गई, कोई तारा दिखता नहीं
कश्ती चलती रही, साहिल मिलता नहीं
पलकें झपकी नहीं, इत्तिसाल होता नहीं
लुटती रही हर घड़ी, फ़ासला घटता नहीं
ज़िंदगी चलती रही, जीना होगया मुहाल
क्या मुमकिन नहीं, तू ही कर दे निहाल।

मुझको भरोसा है बस, तेरे ही नाम का
मैं तो हूँ शैदाई, तेरे जमाले कामिल का
कुछ तो है जो तू क़ाबिज़ है हर दिल में
आख़िर तू ही तो सहारा हर पामाल का
मुझे आस है तू बेहाली से करेगा बहाल
तवक्को है तू दिखायेगा अपना जलाल।

तवक्को= उम्मीद। इत्तिसाल= मिलन।
मुहाल= नामुमकिन। शैदाई= आशिक
कामिले जमाल= पूर्ण सौन्दर्य।
पामाल= पद दलित। जलाल= तेज।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।