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Monday, October 24, 2022

दीपावली

दीप सजालें, तिमिर हटालें, पूजा करलें, अर्चन करलें
मधुर मधुर सा गीत सुनाके, दीवाली को आज मनालें।
छोटा सा ही यह जीवन है, नहीं यहाँ पर चिरजीवन है
मन के भेद मिटा के आज, सबको अपने गले लगा लें।
                                                     दीप सजा लें।

क्या पाया अब तक लड़कर , देखें  तो थोड़ा  हटकर
नादानी में झगड़ा करते , हाथ मिला कर एका कर लें।
मैं पहल करूँ, वो पहल करे, यों वक्त गुज़रता जाता है 
मन में घना अँधेरा है , कोशिश कर लें , आज मिटा लें।
                                                      दीप सजा लें।

प्यार बिना कैसा ये जीवन , क्यों  ऐसे रहना आजीवन?
आज नेह की वर्षा करके, तप्त ह्रदय की प्यास बुझालें
मन की गाँठें सब खुल जाऐं, सबके मन हर्षित हो जाऐं                                     
जीवन को फुलवारी बना लें , रंग बिरंगे फूल  खिला लें।
                                                       दीप सजा लें।

घर आँगन  चहके महके , प्यार के  सारे स्रोत  जगा लें
मन तो पागल होता है, अब कुछ अन्दर की भी सुन लें 
बाहर तो सब जगमग है, कुछ अंदर भी रोशन कर लें   
हर दिन ही दीवाली हो, सब मिलके कुछ ऐसा कर लें।
                                                       दीप सजा लें।

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐं।
अजित सम्बोधि।

Sunday, October 23, 2022

dipawali

Today we  celebrate Dipawali
Of all fests it's the most lively!
It is very graceful , and hence
It is  loved  by all  immensely!

It is a grand  festival of  lights
Champions all  sorts of lights!
Rejoiced on the  darkest night
It dazzles the dark, with lights!

Let  us  light  up  all  our  lamps
So there's light in all the camps!
Lest you forget , let me  remind
don't miss lighting inset lamps!

Hare Krishna!
Ajit Sambodhi 

Friday, October 14, 2022

यही बेबसी है

झूठ हम बोलते नहीं , सच बता नहीं सकते
बोलने को कुछ बचता नहीं , यही बेबसी है।

सच बोलने में बहुत ही कम वक्त लगता है 
इसीलिए तो कम बोलते हैं , यही बेबसी है।

दुनियादारी निभाने को कभी कुछ बोल देते हैं 
जो कहते, बेचैन करता सबको, यही बेबसी है। 

जो दुनियादार हें, जानते हें कब बोलना मुझसे
उन्हें स्वर्ण हंस चाहिए , उनकी यही बेबसी है।

वो समझते हैं, मरक़ज़ी है शख़्सियत उनकी
बहुत भरोसा है ख़ुद पे, उनकी यही बेबसी है।

मेरे को करना नहीं, सब मालिक कर देता है 
मुझे प्रकाश हंस चाहिए , मेरी यही बेबसी है।

जिन्हें झूठ से गुरेज़ नहीं, ख़ूब बोल लेते हैं
उन्हें कुछ न कहिए , उनकी यही बेबसी है। 

जिनसे कहना चाहते हैं , उनसे कह नहीं पाते 
रास्ता है कि वहीं ख़त्म होता है, यही बेबसी है।

गये थे बाहर दिल बहलाने, बीमारी लेके आगये
घर में दिल बहलता नहीं , उनकी यही बेबसी है।

क्या घर से बाहर न निकलें? ज़रूर निकलिए 
बहाने ढ़ूँढ़ के निकलते हैं , बस यही बेबसी है। 

सैन्टियागो निकला , ख़ज़ाने की खोज में 
पहुँच गया पिरेमिड्स तक, यही बेबसी है।

फ़िर मालूम पड़ा, ख़ज़ाना तो घर पे ही है 
पहिले घर पर नहीं देखते , यही बेबसी है।

जो बाहर ढूँढ रहे हैं वो तो अन्दर मौज़ूद है
अन्दर ढूँढना ही सीखा नहीं, यही बेबसी है।

सूर्यदेव नित्यप्रति जीवनदान देते हैं, ऐहसान माना?
पहिले जगकर कभी स्वागत किया? यही बेबसी है।  

जहाँ से आता, सूर्योदय जल्दी होता, मैं जल्दी उठता हूँ 
यहाँ सूर्यदेव देर से आते, मैं जल्द उठता, यही बेबसी है।

वो खाँसते रहते हैं, किसी को बेचैनी नहीं होती
मैं ठठारता हूँ, सब बेचैन होते हैं, यही बेबसी है।

जहाँ हर तरफ़ मरीज़ ही मरीज़ नज़र आ रहे हें 
वहाँ बीमार न होने पर लगता है, यही बेबसी है।

सभी लड़ रहे हें , सब तरफ़ दुश्मन ही दुश्मन हें 
इधर में दुश्मन नज़र नहीं आता , यही बेबसी है।

मरक़ज़ी = central. गुरेज़= परहेज़।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Sunday, October 9, 2022

शरद पूर्णिमा

अहा सपने सुहाने, लिए मन के ख़ज़ाने
आई शरद सुहानी, बदले ऋतु के तराने  
चलो गा लें एक गीत
जैसे मिली कोई जीत
निभा लें ऐसी रीति
जिससे बढ़ जाए प्रीति
कौन जाने कब आएंगे, फ़िर ये  ज़माने  
आया मौका सब आजाएं, साथ निभाने ।

क्योंकि वो भी है अकेला, सो रच लिया मेला
खेल खेल में बनाया, उसने दुनिया का खेला
चलो हम भी खेलें खेल
हो जाए ठेलम ठेल
कुछ करलें ऐसा खेल
हो जाए फ़िर से मेल
सबको मिल जाए खेल, कोई आया क्या बुलाने  
आओ सब कोई आओ, आज बुनो ना बहाने।

चाहे वीणा बजाओ, चाहे बरबत बजाओ
चाहे गीत सुनाओ, चाहे गज़ल सुनाओ
बस मन में उतर जाए
दिल में ठहर जाए
ऐसा हो किरदार 
सबके मन को है भाए
यही तो  ज़रूरी  प्यार के झरने बहाने 
जिससे हो जाएं सच्चे, सबके सपन सुहाने। 

आज शरद की रात और पूनम का चाँद  
रहना होशियार, कहीं ले ना सबको बाँध
ये चाँद बड़ा न्यारा
सबकी आँखों का प्यारा  
तारों की बरात लाया
डाल देगा डेरा
मन में छा गई उमंग, तारे आगये सजाने 
जगने लगा आसमान नई आभा को दिखाने।

 ध्यान पूर्णिमा !
अजित सम्बोधि।

Monday, October 3, 2022

मुझे उसकी तलाश है

हर किसी को किसी ना किसी की तलाश है 

पास है, दिखता नहीं, मुझे उसकी तलाश है।


गुरूर में रहने वाले तो बहुत मिलते रहते हैं  

जो दिल में रहता है, मुझे उसकी तलाश है।


निगाहें चुराने वाले बे वजह मिला करते हैं 

जो ग़म को चुराले , मुझे उसकी तलाश है।


दुनिया में दौलतमंद सब कुछ ख़रीद लेते हैं 

जो सन्नाटा ख़रीद ले, मुझे उसकी तलाश है।


काँटे भी मंज़ूर हैं गुलाब को , साथ के लिए 

बेलौस का साथ दे दे, मुझे उसकी तलाश है।


काँच टूट ही जाता है कभी न कभी साहिब

शफ़्फ़ाफ़ हो, टूटे न , मुझे उसकी तलाश है।


रूँठना और नाराज़ होना, मुख़्तलिफ़ होते हैं 

रूँठे को मनाना पसंद, मुझे उसकी तलाश है। 


जिस्म को चाहने वालों की कमी नहीं साहिब

जो रूह का मुरीद हो , मुझे उसकी तलाश है।


कभी किसी ने पूछ लिया था 'आप कौन हैं?'

 कौन हूँ मैं? अभी भी मुझे उसकी तलाश है।


बेलौस=खरा, निष्पक्ष।शफ़्फ़ाफ़=transparent. 

मुख़्तलिफ़ = different. मुरीद=अनुगामी।


वाह ज़िन्दगी !

अजित सम्बोधि