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Friday, December 31, 2021

Goodbye Twenty Twenty One!

Goodbye dear Twenty Twenty One
I am serious, I don't speak for fun
I shan't ever  forget you , I promise
This year I've lost  my  dearest one.

I  may  sound  bitter , but I am not
I may look distraught , but I'm not
In the nonstop circus of the cosmos
No happening is bigger than  a dot!

We are all puppets, no swank players
Don't you bracket me with naysayers
It happens , go back & see , I've seen
I am not  speaking  like  soothsayers!

So goodbye dear Twenty Twenty One
It's like what I said to my dearest one
You did your duty, as a calendar year
We are all dabs of the  Cosmic Canon!

Om Shantih
Ajit Sambodhi

Saturday, December 25, 2021

HAIL JESUS

Hail  Jesus , the  son  of  Mary and Joseph
Who addressed the woes  of  the  helpless
Hail Jesus , the  son of  the  Almighty  God
Whose heart was  home  to  the  homeless

He came to atone for  the  offences  of  all
He suffered for all  those  who  were  thrall
To their passions. He who was  the  purest
Of the Pure , and  had  no  blemishes  at all

How to atone for all we did to you,oh Lord?
How treacherously we deceived you , Lord!
Instead of placing you dearly in our hearts,
 We put you cruelly on the cross,dear Lord!

Help us endure this self-made gloom, Lord
It looms large on us,this dark shadow, Lord
We pray to you to forgive us our faults,Lord
You, the ever benign, and benevolent, Lord!

Om Shantih
Ajit Sambodhi.

Thursday, December 16, 2021

ध्यान

शक्ति का कर लो आहवान
स्वत: ही  लग  जाए  ध्यान
जो कुछ है वह शक्ति करती
यही  धारणा  बनती  ध्यान।

जब तक करता बनते रहोगे
ख़ुद को ही तुम भजते रहोगे
ख़ुद के काम ही ध्यान बनेंगे
असली  ध्यान  से दूर  रहोगे।

दुनियां से कुछ मुंह को मोड़ो
सरल  बनो    चतुराई  छोड़ो
ख़ुदको थोड़ा भूल ही जाओ
सब कुछ शक्ति पर ही छोड़ो।

जब  शक्ति  से  प्यार  करोगे
तब ख़ुद  से  तुम  दूर  रहोगे
सब कुछ  शक्ति ही करती है
तब जाकर  यह देख  सकोगे।

खाना  पीना   चलना  फिरना
एकदिन होश में रहकर करना
यह  भी  शक्ति   करती  रहती
इस  पर ध्यान ज़रूरी  रखना।

बतरस हो  या  जिह्वा रस हो
दुनियां का  कोई  भी  रस हो
सब रस  फीके  लगने  लगते
जब ध्यान धारणा अंत:रस हों।

शक्ति= कुंडलिनी।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Monday, December 13, 2021

तेरी बिना पर ही जीते हैं हम

दर्द तो सब हम पिये जाऐंगे
ज़िंदगी को हम जिए जाऐंगे
परखने आऐंगे ग़म तो  सदा
मगर हम चलते चले जाएंगे।

नाकामियों से  हम न  घबराएंगे
दिलकी आवाज़ को सुने जाऐंगे
रुकना कभी  हमने  जाना  नहीं
गीत गाते  हुए हम  चले  जाएंगे।

तेरी रंगत में रंगते चले  जाएंगे
तेरी क़ुर्बत में रहते चले जाएंगे
क्या हुआ मिटना पड़ जाए ग़र
तेरे पास  फ़िर भी चले  जाएंगे।

ऐ मालिक तेरे दम पे जीते हैं हम
तेरी खातिर ही तो  ज़िन्दा हें हम
तेरे बिना क्या औकात किसी की
तेरी बिना पर ही तो जीते हैं हम।

क़ुर्बत= साथ। बिना= वजह से, without.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


Friday, December 10, 2021

मुझे क्या ख़बर

मुझे क्या ख़बर कितनी साँसें बची हैं
मुझे क्या ख़बर कितनी आहें बची हैं।

तब भी ज़रूरत थी  बेहद  तुम्हारी
मुझको ज़रूरत है अब भी तुम्हारी
तुम्हारे ही साथ चलना था  मुझको
नहीं था पता , बिछड़ना है  मुझको
तुम्हें क्या ख़बर क्या हालत बनी है
नहीं साँस लेने  को  साँसें  बची  हैं।

तुम्हीं ने कहा था न होंगे अलग हम
जो वायदा  किया  है न भूलेंगे  हम
तुम्हीं से तो सीखी थी मैंने सखावत
तुम्हीं ने तो  की थी मुझ पे  इनायत
तुम्हीं ने तो अश्कों को पोंछा था मेरे
अभी सिर्फ़  वो ही तो  यादें बची  हैं।

फ़िज़ाओं का  रंग  बदल सा रहा  है
तुम्हारा  असर  बे असर हो  रहा  है
ऐसे  में  कैसे  मैं  रह  पाऊँगा
पता भी नहीं मैं कहाँ जाऊँगा
किसी  को  भी  क्या  मैं  दे  पाऊँगा
मेरे  पास  तो  बस, तमन्ना  बची  हैं।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Tuesday, December 7, 2021

अपना

चांदको न बना लेना दिलबर अपना
उसने क्या कभी देखा साया अपना?

सम्भाल कर रखना भरोसा  अपना
ख़ुद को ही रखना है ख़्याल अपना।

ख़ूब देखा करें सुहाना सपना अपना
सुकून मिलेगा सिर झुकाने पे अपना।

यूं ही भटका करोगे सहरा ए सराब में
जब तलक न मिटाओगे गुरूर अपना।

वो है तो महक जाता हूं कभी न कभी
वरना मुझमें क्या है कहने को अपना।

बिना उसके ज़िन्दगी लगती थी सपना
कुछ न था जिसे कह पाता मैं अपना।

जब से थाम लिया है उसका ये हाथ मैंने
सारा जहां लगता है मुझे अपना अपना।

सहरा ए सराब= म्रगत्रष्णा का रेगिस्तान।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


Saturday, December 4, 2021

----वाला

एक हक़ीक़त है, बयान किए दे रहा हूँ 
बता देना अगर मिल जाए चाहने वाला।

हर कोई पैवस्त है ख़ुद के ख़यालों में
नहीं मिलेगा कोई ख़याल रखने वाला।

अच्छा होता राह में खिलता फूल होता
कोई आही जाता कभी मुस्कुराने वाला।

ये ज़िन्दगी सफ़र है, अब मान भी जाओ
मुसाफ़िर कोई नहीं होता है, रुकने वाला।

ठोकरें इतनी खाईं हैं कि उजाला हो गया
कहाँ से आयेगा, कोई शमा जलाने वाला।

दिल का और दर्द का तो रिश्ता  है पुराना
दिल शाद जो करदे, है भी कोई दिल वाला?

आदमी तो बहुत मिल जाते हैं, मुझे चाहिए
वो अन्दर का आदमी, न कि ये बाहर वाला।

हर चेहरे के पीछे होते हैं कई और भी चेहरे
तलाश में हूँ, मिल जाए, बिना मुखोटे वाला।

किश्तों में तो मुहब्बत ख़ूब मिलती रहती है
गुमशुदा होगया, था जो एक मुश्त देने वाला।

पैवस्त= involved.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, December 1, 2021

Myrtle Lubich May 21, 1920--Nov.12, 2021.

As I looked at her  photograph
I felt like it was  a chronograph
Of a life lived in gladsomeness
Yes,  a signature, an autograph.

See at the face, the whole face
Forgo adjectives, they'll  efface
What it  speaks sans  speaking
About a life lived in silent grace.

I was drawn to it & felt blessed
The inexpressible, it expressed!
What  more can one beg of life? 
If unsolicited, one is so blessed!

Om Shantih
Ajit Sambodhi.