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Saturday, May 29, 2021

और क्या चाहिए

सुबह से शाम होती है, और क्या चाहिए
शाम से सहर होती है, और क्या चाहिए।

चराग़ जलाते हैं, अंधेरा सम्हालने के लिए
बस सम्हल जाए, फ़िर, और क्या चाहिए।

आवाज़ दें, इसके पेशतर कोई हलचल हो
पास ऐसा हवाख़्वाह तो, और क्या चाहिए।

चेहरे से सब वाक़िफ़ हैं, दिल रहता निहां है
बस चेहरे को सजाना है, और क्या चाहिए।

वक्त को सुनानी हैं, कुछ बातें भी कर लेते हैं
वक्त बख़ूबी याद रखता है, और क्या चाहिए।

दिल की बातें हैं, कोई दिल मिलेगा, कर लेंगे
अभी तो हाथ मिला लेते हैं, और क्या चाहिए।

हवाख़्वाह= शुभचिंतक। निहां= छुपा हुआ।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, May 26, 2021

हो गया

अब्र बरसा किया है, मौसम सुहाना हो गया
आज पूरनमासी है, और, चाँद गोल हो गया।

चाँद तारों को झाँका, लगा रिसाला खुल गया
देखते देखते सारा, आसमान मकतब हो गया।

बोधिधर्म देखा किया दीवार को नौ साल तक
कोरा देखते देखते, सचमुच वो कोरा हो गया।

चुप साधन चुप साध्य है , चुप रह बोली भूरी
जिसने जो चाहा सही, वह वैसा ही हो गया।

लोग घबराते हैं, आँखें  न बन्द हो जाऐं कहीं
जब भी बन्द हुई आँखें, तभी उजाला हो गया।

इब्तिदाई मुश्किलें आती हैं सफ़र में सभी को
जैसे अना ग़ायब हुई तो, अंदर आना हो गया।

अब्र= बादल
मकतब= पाठशाला
इब्तिदाई= शुरू में
अना= ego

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Tuesday, May 25, 2021

मुस्कुरा लें ?

हवा में ख़ौफ़ घुस आया है; तो चलो मुस्कुरा लें?
लोग मुंह छिपाते हैं, मास्क में; आंखें मुस्कुरा लें?

हम बुलाते हैं पास उनको , वो दूर हटते जाते हैं
कहते हैं दूर रहो ; हमने कहा आओ, मुस्कुरा लें?

वो कहते हैं कोई छुपा रुस्तम आगया है शहर में
चुपके से चिपक जाता है; मौका है , मुस्कुरा लें?

बड़ा चालाक है, शक्ल बदलता रहता है हर दिन।
लगता है कोई मसखरा है , अपुन भी मुस्कुरा लें?

हमने कहा ऐसे डरने लगेंगे, तो और डरायेगा वो।
पूछा दवा क्या है ? हमने कहा क्यों न मुस्कुरा लें?

ज़िन्दादिली तो जी भरकर, मुस्कुराने का नाम है।
बोले कब मुस्कुराऐं ? हम बोले अभी मुस्कुरा लें?

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Sunday, May 23, 2021

क़तील शिफ़ाई के चंद अशआर

खुला है झूंठ का बाज़ार, आओ सच बोलें
न हो बला से खरीदार, आओ सच बोलें।

सुकूत छाया है इंसानियत की कद्रों पर
यही है मौका ए इज़हार, आओ सच बोलें।

हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना
बनाम ए अज़्मत ए किरदार, आओ सच बोलें।

सुना है वक़्त का हाकिम बड़ा ही मुंसिफ है
पुकार कर सर ए दरबार, आओ सच बोलें।

छुपाए से कहीं छिपते हैं दाग़ चेहरे के
नज़र है आईना बरदार, आओ सच बोलें।

सुकूत = ख़ामोशी
बनाम ए अज़्मत ए किरदार= किरदार की इज़्ज़त के नाम पर
सर ए दरबार= महफ़िल में
नज़र है आईना बरदार= ख़िदमत में आईना लिए खड़ा है ख़ाकसार।

ओम् शान्ति:

बोलता हूँ

जब भी बोलना होता है, बेशक बोलता हूँ 
ख़ामोशी रहे इसलिए कागज़ पे बोलता हूँ ।

बाज़ार में मिलती ख़ामोशी, सब ख़रीद लेते
ख़ामोशी बिकती नहीं, बताने को बोलता हूँ।

कोई खंजर भी चलाए तो भला क्या होना है
ख़ामोशी के सिवा कुछ नहीं, यही बोलता हूँ।

आवाज़ करने के लिए, कोई दूसरा दरकार है
ख़ामोश ख़ुद को होना होता है, यह बोलता हूँ।

मैं जिस्म की बाबत तो कुछ कम ही बोलता हूँ।
ख़ामोशी हम-ज़ुबाँ है रूह की, वही बोलता हूँ।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, May 20, 2021

मिल गई

गरमी के मौसम में बरसात आ गई
इतना बरसा कि हर शाख धुल गई।

बारिश में परिंदों के पर गीले हो गए
आज पंख सुखाने को धूप खिल गई।

हर तरफ़ में चहचहाहट होने लग गई
हवा में उड़ने की छूट, फ़िर मिल गई।
 
कोयल है गा रही, ज़िंदादिली के साथ
लगता है गले को, नई ताकत मिल गई।

दो दिन की बिना मांगी बंदिश के बाद
इन्सान को गरमी से, राहत मिल गई।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

जैसे

अभी साँस निकली एक जैसे
इंतिज़ार कर , थकी हो जैसे।

बादल कल से बरसा किया है
कहीं से तूफ़ान आया हो जैसे।

बौछारें कुछ उड़ उड़ कर आईं
हवा ने एहसान कर दिया जैसे।

एक बुलबुल यहाँ दुबक के बैठा
किसी ने हवा बंद करदी है जैसे।

खुली आँख से ख़्वाब क्या देखा
ख़ुशबू उड़ कर आ गई हो जैसे।

तसव्वुर में डूब गया है दिल ऐसे
चाँदनी में डूब गया हो ग़म जैसे।

एक ख़्वाब अभी आया है ऐसे
बादल से चाँद निकला हो जैसे।

अब्र आलूद मौसम चला गया
कोई बिन बुलाया मेहमान जैसे।

अब्र आलूद= घटाओं से भरा

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।




Monday, May 17, 2021

तन्हा हो गया

हम थे बेकरार सुनने को, सुनाने वाला ही सो गया
दास्तान ख़त्म भी हुई न थी, बीच में ही सो गया।

हम तो रहते थे बेख़बर, ख़बर रखने वाला खो गया
क्या रही मज़बूरी ऐसी, ख़ामोश कैसे हो गया?

यक़ीन था इतना उस पे, हम आँखें बंद कर चलते रहे
जब खोली आँखें तो देखा, रहबर रवाना हो गया।

समझा था उम्र भर के लिए, मिल गया हमदम हमें
वो उम्र कम करता रहा और, बिस्मिल हो गया।

थे तो हम हमसफ़र, रहगुज़र भी अब तक एक था
मुहताज हो मैं, देखा किया और, वो रफ़ू हो गया।

ख़ूब बहलाया है दिल को, नाकामियाँ ही मिल सकीं
क्या करूँ इस ज़िन्दगी का, दिल ही तन्हा हो गया?

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Saturday, May 15, 2021

बोकूजू

एक बार एक ज़ेन फ़क़ीर थे, नाम था बोकूजू
कुछ लोगों के लिए मगर वो थे महज़, जूजू।

वो कभी कभी चिल्लाते थे, बोकूजू! बोकूजू!
फ़िर ख़ुद ही जवाब देते : हां, यहीं है बोकूजू।

किसी ने पूछा: आप क्यों चिल्लाते हैं, बोकूजू?
जवाब मिला: मुझे हर वक्त है अपनी जुस्तजू।

फ़िर बोले: अकेलापन सताने लगता है उसको
जो नहीं रखता है हरदम, ख़ुद को आजू-बाजू।

ख़ुद से क़राबत बनाये रखना है इंतिहाई लाज़िमी
अगर जो दिल में बसा रखी है बसीरत की आरजू।

जूजू= हौआ। क़राबत= निकटता। जुस्तजू= तलाश।
बसीरत= insight.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Friday, May 14, 2021

भूल गये

वो आये हमसे मिलने को, हम बातें करना भूल गए
गले लगाना भूल गए , हम मुस्काना भी भूल गए।

एक नन्हीं चिड़िया आई थी, गीत सुना, परवाज़ हुई
उसके ख़ुशरंग में खोकर हम, हाथ हिलाना भूल गए।

दूज का चांद भी आया था, भोली सी मुस्कान लिए
वो शर्म के मारे भाग गया, या शीशनमन, हम भूल गए।

एक कोयल उड़ के आई है, डाली पर आकर बैठी है
वह गीत सुनाना भूल गई, याहम, उसे मनाना भूल गए।

आज तृतीया आई है, फ़िर अक्षय पात्र को साथ लिए
रिक्त कर दिया पात्र मगर, एक अक्षत को हम भूल गए।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, May 12, 2021

नींद चुरा रहा था

कभी यहां पर , समां रहा था
किसी का मैं भी ख़ुदा रहा था।

चराग़ जब तक जलता रहा था
वक्त भी आकर, थमा रहा था।

वो मुझको येभी दिखा रहा था
कभी यहां , घौंसला रहा था।

काली घटाएं, जब जब भी छाईं
पेड़ों पे सावन का झूला रहा था।

मैं ख़्वाब अपने , सुना रहा था
वो पलकों से नींद चुरा रहा था।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Tuesday, May 11, 2021

रस्में निभा रहा हूं

मौसम ले रहा है सांस, मैं भी ले रहा हूं
बाकी बची हें कुछ, इसलिए ले रहा हूं।

ज़ुल्फ़ें सम्हाले कोई, मैं दर्द सम्हाले हूं
जीने के लिए दर्द का सहारा ले रहा हूं।

सन्नाटा बोलता है गोकि ज़ुबां अलग है
उसी से कर के बातें, रातें बिता रहा हूं।

चांद ने जब भी उड़ेली, चांदनी मेरे वास्ते
साझा दर्दे निहां उसीसे, मैं करता रहा हूं।

कहां से लाऊं उसे, नेमुल बदल है नहीं
हारे हुए इन्सान की, रस्में निभा रहा हूं।

दर्दे निहां= छुपा हुआ दर्द
नेमुल बदल= सानी

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


Sunday, May 9, 2021

कश्ती उजड़ के रह गई

पत्ते तो सब झड़ गये, अब सूनी शाख़ें ही रह गईं
परिन्दो यहाँ न आना, सिर्फ़ वीरानियाँ ही रह गईं।

तारों का कहकशाँ था, थी चाँदनी छिटकी हुई
घटाऐं पन्ने पलटती गईं, मजबूरियाँ ही रह गईं।

बड़ी शिद्दत से जी ज़िंदगी, बनी थी इक किताब
ज़लज़ला बहाकर ले गया उसे , यादें ही रह गईं।

क्या सलीका था रहगुज़र निकालने का, उलझन में
उस सलीके की बस अब आँखों में, तस्वीर रह गई।

सबकुछ था मेरी कश्ती में, मालिक का बख़्शा हुआ
मेरा नाख़ुदा चला गया, मेरी कश्ती उजड़ के रह गई।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Saturday, May 8, 2021

जिसे मैं ढूँढता हूँ।

न ख़ुदा मिलता, न वो नाख़ुदा जिसे मैं ढूँढता हूँ
सब कुछ मिलता सिवा उसके जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

हर रोज़ मिलता है एक खोया खोया सा आसमाँ
नहीं मिलता अब वो आसमान जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

चेहरों का दरिया, गुज़रता रहता है मेरे सामने से
नहीं आता है नज़र वह चेहरा, जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

हर दरीचे में जाकर, सूँघता हूँ, हवा के झोंकों को
नहीं मिलता महक का झोंका, जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

लगता है खड़ा हूँ मैं, ज़ुबानों के एक समन्दर में
वह हम-ज़ुबाँ नहीं है मिलता, जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

एक थी निगाह जिसमें इन्तिज़ार हुआ करता था
अब वो दिखती नहीं है, हज़ारहा उसे मैं ढूँढता हूँ ।

नाख़ुदा= नाविक।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Wednesday, May 5, 2021

STAY FIT

People are scared of Covid, quite a bit
In a way though, it has been quite a hit
Time was they didn't bother about body
Now almost everyone wants to stay fit.

I suggest you keep three items in your kit
I am sure you can then, keep yourself fit
They are : water, oxygen, and humming
I will explain all of them to you , bit by bit.

You know body is seventy percent water
In no case please, allow this level to falter
So the first thing for you to remember is
To hydrate your body with enough water.

The next unavoidable thing is , oxygen
Like water , every cell runs on oxygen.
Unfortunately, people do chest breathing
Switch over to belly breathing, for oxygen.

There is a nerve called the vagus nerve
Very many organs are linked to this nerve
One can tone them by toning this nerve
And humming is a way to tone this nerve!

It's so easy! Wish you all good health!

Om Shantih
Ajit Sambodhi.