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Friday, April 30, 2021

ये रिश्ता

मेरा उनका रिश्ता है क्या
दिलों के सिवा कोई जानेगा क्या
जन्मों से जो चला आ रहा
अब जाके वो बदलेगा क्या?

उन्होंने ही माना था सब कुछ मुझे
उन्होंने ही पहिचान दी थी मुझे
मैं तो अकेला गुमसुम सा था
उन्होंने ही मुस्कान दी थी मुझे।
अचानक ही अब ये क्या हो गया
ज़माने ने बदली है रफ़्तार क्या?

उनका जो साथ मुझको न मिलता
मुश्किल में हाथ मुझको न मिलता
अकेला कहाँ तक मैं ज़ुल्मत को सहता
उनका सहारा जो मुझको न मिलता।
लाकर यहाँ तक क्यों छोड़ा मुझको
मुझको बता दो मेरी ख़ता क्या?

सौंपूँ मैं ख़ुद को हाथों में तेरे
उनके ही अल्फ़ाज़ मैं कह रहा हूँ 
मुझको ज़रूरत है हरदम तुम्हारी
अपने ही अल्फ़ाज़ दुहरा रहा हूँ।
कहीं ऐसा ना हो रब ही ये पूँछे
रज़ा उससे पहले ले ली थी क्या?

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, April 29, 2021

दिखता नहीं है

वही सितारा, वही नज़ारा, पहले जैसा दिखता नहीं है
नज़र का फ़र्क़ है या कुछ और है वैसा दिखता नहीं है।

यह आँखों के आगे जो पर्दा रहता है एक, शबनमी
यह धुंधे गर्द है या कुछ और है, वैसा दिखता नहीं है।

चाँद तो अब भी चमकता है, अपने उसी हिसाब से
मगर कुछ था उसमें जो अब, वैसा दिखता नहीं है।

वो शाम, वो गुफ़्तगू, वो अफ़साने और सरगोशियाँ !
शाम तो अब भी आती है, बाकी वैसा दिखता नहीं है।

ज़िन्दगी तो अब भी गुज़र जाती है, अपनी रफ़्तार से
मगर ज़िन्दादिली का नुक़्ता, अब वैसा दिखता नहीं है।

शबनमी=जालीदार। गुफ़्तगू=बातचीत। अफ़साने=किस्से।
सरगोशियाँ = मुँह को कान के पास लाकर बात करना।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Tuesday, April 27, 2021

हुआ करे

आज बद्र का चाँद है, वह भी चैत का, हुआ करे
सभी कहते हैं, बड़ा ख़ूबसूरत होता है, हुआ करे।

कोई इससे मेरी क़ुर्ब निकाल के ख़ुश है, हुआ करे
बक़ौले नुजूमी ये मेरी यौम ए पैदाइश है, हुआ करे।

बहुत उड़ती थीं ख़्वाहिशें हवाओं में, आसमानों में
मैंने उनके पर कतर दिए हैं, नाराज़ हैं, हुआ करें।

बहुत कुछ होता रहता है यहाँ, हर वक्त, हुआ करे
रातें अगरचे  तवील वा ख़ुर्द  होती हैं , हुआ  करें।

हाथ की लकीरें भी बोलती हैं, ऐसा लोग कहते हैं
आँखें भी राज़ छुपाने में माहिर होती हैं, हुआ करें।

बेताब रहते थे सुनने सुनाने को, अफ़साने, हरदम
मुहब्बत करने में भी तक़लीफ़ होती है, हुआ करे।

रूठना ज़रूरी है शायद, मन तरसता है कई बार
मनाने वाला तो है नहीं, हश्र जो होगा, हुआ करे।

यहाँ तो अना की भी जंग न थी, मगर जुदाई हो गई
हाँ मौत ने यह बता दिया वो क्या चीज़ है, हुआ करे।

बद्र=पूनम का चाँद। क़ुर्ब=नज़दीकी रिश्ता।
बकौले नुजूमी=ज्योतिषी के मुताबिक।
यौम ए पैदाइश=सालगिरह। तवील वा ख़ुर्द= लम्बा या छोटा।
हश्र=परिणाम। अना=ego.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Friday, April 23, 2021

देखा करता हूँ!

सहर से शम्मा जलने तक मुसल्सल देखा करता हूँ 
कभी ख़ुद की, कभी उसकी, फ़िज़ा देखा करता हूँ।

है अजब, मगर यह दौर, भी, मैं, आज़माया करता हूँ 
मेरे ख़्वाबों को नया जामा, पहनाकर, देखा करता हूँ।

थोड़ी दूर तक, चलकर साथ, बराबर देखा करता हूँ 
वो नहीं,  अफ़वाह, चेहरों पे चिपकी, देखा करता हूँ ।

हर सिम्त की जानिब, वही तस्वीर, मैं, देखा करता हूँ 
हवा से पूछ कर, फ़िर उसको उड़ाकर, देखा करता हूँ ।

ऐ आसमाँ तू तो गवाह है, हर पहलू ए वाक़िआत का
क्या तू भी ऐसे देखता उसको, जैसे मैं, देखा करता हूँ ? 

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, April 22, 2021

सिरहाने से

तुमने कहा था, न छोड़ोगे अकेले उसे, अपने जाने से
अब क्यों हो रहे हो इतने लाचार, उसके चले जाने से।

देख, जाने से पहले उसने बहुत कुछ दे दिया है तुझको
वही सम्हालता रहेगा हरदम तुझको, हर नये फ़साने से।

न हो परीशाँ इतना तू, तौफ़ीक को मुसीबत न समझ तू
कोशिश तो कर, मान जायेगा एक दिन मन, मनाने से।

ख़ुदा ने करम कर के, बख़्शा है तुम को ऐसा नाख़ुदा
जो जाकर भी तेरे पास, आता रहता है, हर बहाने से।

कौन निभाता है साथ इतना, एक बार बिछड़ने पे ऐसे
जैसे वो तुझे हरदम, झाँकता रहता है, तेरे सिरहाने से।

तौफ़ीक= सामर्थ्य। नाख़ुदा= नाव खिवैया।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Monday, April 19, 2021

फ़र्क़ होता नहीं है

बहुत कुछ होता यहाँ , मगर लगता कुछ होता नहीं है
दिल चाहता है बयाँ करना, ज़ुबाँ से बयाँ होता नहीं है।

सच लगता है जो यहाँ पर, वो सच मगर होता नहीं है
क्या ख़ूब खेल है ज़ुबाँ का, सच नुमाया होता नहीं है।

झूठ के पैबन्दों से रच जाता है सच्चाई का ऐसा जामा
जिसमें पैबन्दों का कोई ज़िक्र , कहीं पर होता नहीं है।

एक घर बनाने में कितनों की, सारी उम्र खप जाती है
बस्तियाँ जल जाती हैं, जलानेवाला कोई होता नहीं है।

लोग चलते पैदल हज़ार मील, कोई रोके, होता नहीं है
मंज़िल पहुचने से पहले गिरते, कोई रोदे, होता नहीं है।

भूख से तड़पते हैं लोग, मगर कहीं शोर, होता नहीं है
तस्वीरें दिखाती चमचमाता  सूरज, फ़ज्र होता नहीं है।

एक बेटे को जवान करने में एक माँ बूढ़ी हो जाती है 
बेटा ग़ायब हो जाता है, किसी को फ़र्क़ होता नहीं है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Friday, April 2, 2021

GOOD FRIDAY

"Father, forgive them", implored Jesus.
Nailed to the Cross, He thought of us;
"for they know not what they do", He
Continued in great compassion for us.

He bestowed upon us, inner awareness
By elevating our physical consciousness
To the heights of spiritual consciousness
At the crucial time of extreme hardness.

"Let thy will be done", He knelt on his knee
Knowing well, "one of you shall betray me".
He unveiled "the kingdom of God" within
Of which He happened to be the trustee.

Om Shantih
Ajit Sambodhi.