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Wednesday, February 14, 2024

हाँ एक थी चौदह फ़रवरी थी !

 हाँ कभी ऐसा भी होता था

बिना कहे ही सब होता था 

आज  क्या  क्या  होना है 

सब को भी पता होता था !


युगों युगों से होता आया है 

हर स्पंद सोखता  आया  है 

बोलकर न इसे बिगाड़ देना 

बिना कहे निभाता  आया है !


न दिखाता हूँ न बोलता हूँ 

न सजाता हूँ, न छिपाता हूँ 

वो खुद ही बोलता रहता है 

रुख़ पे सब लिखे  जाता है !


हाँ एक थी, चौदह फ़रवरी थी 

फ़िक्रमंद   थी, दानिशमंद  थी  

मगर एक दिन को भी न अलग 

होने वाली अजब सी शिद्दत थी!


क्या  रिश्ता  था  हमारा उनका 

ये  न अब  का  था  न तब  का 

सदियों से यूँ ही चला आता है 

नाम नहीं होता है कोई इस का !


ओम् शान्ति:

अजित सम्बोधि


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