मेरी जुदाई में उसे ज़माने का डर लग रहा है।
वो कितना चाहता है, मुझ पर कुरबान होना
मगर उसे डर है ये औरों को बुरा लग रहा है।
लोगों को न लगता होगा अच्छा क़तई ये कि
जिस शिद्दत से वो अकेले में , मिलता रहा है।
मुझसे मिल के उसको मिली है, मसर्रत इतनी
मेरी याद में वो सितारों के नीचे जगता रहा है।
उसकी मासूमियत को मैं किस तरह बयाँ करूँ
जिस तरह बे-लौस वो ख़्वाबों में आता रहा है!
मुझे डर है तो बस इस बात का, मेरी वजह से
उसे किन हालात से दरपेश , होना पड़ रहा है।
ख़फ़ा होना उसके ज़ेहन में समा नहीं सकता
बरसों जो मेरे हाथों में ख़ुद को सौंपता रहा है।
मेरी तन्हाई की बाबत आज इस जगह पे ये
मेरा दिल किस साफ़गोई से बयाँ कर रहा है।
मेरी तन्हाई रिहान के माफ़िक , मुतबर्रिक है
इसलिए ये तब्सिरा बेसाख़्ता हुए जा रहा है।
शिद्दत= लग्न से। मसर्रत= ख़ुशी।
बे-लौस= बेझिझक।दरपेश=सामना।
ज़ेहन= दिमाग। रिहान= तुलसी।
मुतबर्रिक= पवित्र। तब्सिरा= खुलासा।
बेसाख़्ता= अनायास।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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