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Sunday, June 12, 2022

झंडा

उसने आपका झंडा उखाड़ कर ख़ुदका लगा दिया 
आपने उसका झंडा उखाड़ कर अपना लगा दिया।
आप बेदाग़ कैसे रह गए , एक सा ही काम करके 
उस ने पहले किया और आप ने बाद में कर दिया ?

हसद एक मुफ़्तख़ोर है , जिसे नाहक पनाह दी है 
गुमनाम रहकर उसने दिलों में शिगाफ़ खींच दी है 
रब ने तो इन्सान बनाया था , हर तरफ़ से हमवार 
इंसाँ ने मज़हब और सरहद की लकीरें खींच दी हें।

मालिक ने तो न मज़हब बनाया और नाही सरहद
कोई बतला दे हमें जहाँ नहीं है मालिक का अहद?
मालिक ने तो करम करके बनाया था एक इन्सान 
उसकी इंसानियत कहाँ खो गई,कैसे आगई हसद?

देखो इन्सान की तरजीह कैसे  तब्दील हो चुकी है  
उसकी  बरतरी अब  तिशनगी ए लहू  बन चुकी है 
जिधर देखो जंग और ख़ूनी रंजिश नज़र  आती  है 
इन्सानियत हैवानियत की,अदल बदल हो चुकी है।

इस तस्वीर को बदलने की बस एक ही तरक़ीब है 
मान लो कि जो ख़ालिक है , वही हमारा  हबीब है
हम खाली हाथ आए थे , खाली  हाथ  ही  जाऐंगे 
उसके हाथ ख़ुद को सौंप दें, वही हमारा तबीब  है।

हसद= डाह। शिगाफ़ = दरार। हमवार= इकसार।
अहद= दायरा। तरजीह = बरतरी= priority.
तिशनगी ए लहू= ख़ून की प्यास। ख़ालिक= creator.
हबीब = प्यारा। तबीब = हकीम।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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