सारी दुनियाँ से मिल लिया, ख़ुद से मिलना चाहता हूँ
ढूँढता रहा जिसको हर दम, उसी से मिलना चाहता हूँ ।
तवारीख़ तो नगर वधू है, फ़ातेह की संगिनी जो ठहरी
जिस चेहरे पे दर्ज हो इबारत, उससे मिलना चाहता हूँ ।
लगता है जैसे ज़िन्दगी फ़ज़ीहत ए फ़ज़ूल में चली गई
जिसकी क़ुर्बत में वज़ाहत हो, उससे मिलना चाहता हूँ ।
क़िस्सा वही, किस्सा गो भी वही, इसमें ख़ास क्या है
बयान ए रसूल है जिसका , उसको मिलना चाहता हूँ ।
सबक़ सिखाने वाले मुझको, अक्सर ही मिला करते हें
जो गया वक़्त लाना सिखा दे, उससे मिलना चाहता हूँ ।
ज़िन्दगी मेहरबान है , जो नहीं माँगा था वो भी दे दिया
मुझे मेरी मुस्कुराहट दिला दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
मिलने पर सभी मुस्कुराते हें , हमें भी मालूम है ये बात
मुस्कुराहट हमनवाई से सजाए, उससे मिलना चाहता हूँ ।
रास्तों में ही नहीं , दिलों में भी संग मिल जाया करते हें
जो उस संग को मोम बना दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
मन्दिर बहुत दिखते हें, नामदार भी और शानदार भी
दीप जो जलाए सूने मंदिर में , उससे मिलना चाहता हूँ ।
चाहत दोनो तरफ़ है , हमको मालूम है बख़ूबी ये बात
मगर पहिले शुरुआत करे , मैं उससे मिलना चाहता हूँ ।
हर तरफ़ नफ़रत के काँटे चुभते, जीना मुहाल हो गया
इन काँटों पर फूल खिला दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
धड़कन हर दिल में क़ाबिज़ है , मगर जो समझ पाए
धड़कन का धड़कन से रब्त, उससे मिलना चाहता हूँ ।
जब कोई बोलता है तो, मैं मुँह नहीं आँखें देखता हूँ
जिन आँखों में पज़ीराई हो , उनसे मिलना चाहता हूँ ।
नफ़रत तो इतनी देख ली , कि सारे ख़्वाब बिखर गए
कोई आजाए बरादर बनकर, उससे मिलना चाहता हूँ ।
ज़िन्दगी बेहाल हो गई , किरदार देख देख दुश्मनी के
जो दुश्मन हो दुश्मनी का, उससे मिलना चाहता हूँ ।
वो रूँठा बैठा है वहाँ , मैं उसका वादा लेकर बैठा यहाँ
उस सिरफ़िरे से कोई कह दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
ख़ामोश है समन्दर भी, वादियाँ भी , और वो ख़ामोशी
मेरी रूह सुनती है , लिहाज़ा उससे मिलना चाहता हूँ ।
फातेह= विजेता। क़ुर्बत= नज़दीकी। वज़ाहत= भव्यता।
किस्सा गो= story teller. बयान ए रसूल= word of prophet.
हमनवाई= हमख़्याली। संग= पत्थर। मुहाल= असम्भव।
रब्त= मेलजोल। पज़ीराई=अपनापन।
ओम् शान्तिः
अजित सम्बोधि।
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