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Monday, September 12, 2022

मिलना चाहता हूँ

सारी दुनियाँ से मिल लिया, ख़ुद से मिलना चाहता हूँ 

ढूँढता रहा जिसको हर दम, उसी से मिलना चाहता हूँ ।


तवारीख़ तो नगर वधू है, फ़ातेह की संगिनी जो ठहरी

जिस चेहरे पे दर्ज हो इबारत, उससे मिलना चाहता हूँ ।


लगता है जैसे ज़िन्दगी फ़ज़ीहत ए फ़ज़ूल में चली गई 

जिसकी क़ुर्बत में वज़ाहत हो, उससे मिलना चाहता हूँ ।


क़िस्सा वही, किस्सा गो  भी वही, इसमें ख़ास  क्या है 

बयान ए रसूल है जिसका , उसको  मिलना चाहता हूँ ।


सबक़ सिखाने वाले मुझको, अक्सर ही मिला करते हें 

जो गया वक़्त लाना सिखा दे, उससे मिलना चाहता हूँ ।


ज़िन्दगी मेहरबान है , जो नहीं माँगा था वो भी दे दिया 

मुझे मेरी मुस्कुराहट दिला दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।


मिलने पर सभी मुस्कुराते हें ,  हमें भी मालूम है ये बात 

मुस्कुराहट हमनवाई से सजाए, उससे मिलना चाहता हूँ ।


रास्तों में ही नहीं , दिलों में भी संग मिल जाया करते हें 

जो उस संग को मोम बना दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।


मन्दिर बहुत दिखते हें, नामदार भी  और शानदार  भी 

दीप जो जलाए सूने मंदिर में , उससे मिलना चाहता हूँ ।


चाहत  दोनो तरफ़ है , हमको मालूम है बख़ूबी ये बात 

मगर पहिले शुरुआत करे , मैं उससे मिलना चाहता हूँ ।


हर तरफ़ नफ़रत के काँटे चुभते, जीना मुहाल हो गया 

इन काँटों पर फूल खिला दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।


धड़कन हर दिल में क़ाबिज़ है , मगर जो समझ पाए 

धड़कन का धड़कन से रब्त, उससे मिलना चाहता हूँ ।


जब कोई बोलता है तो, मैं मुँह नहीं  आँखें देखता हूँ 

जिन आँखों में पज़ीराई हो , उनसे मिलना चाहता हूँ ।


नफ़रत तो इतनी देख ली , कि सारे ख़्वाब बिखर गए 

कोई आजाए बरादर बनकर, उससे मिलना चाहता हूँ । 


ज़िन्दगी बेहाल हो गई , किरदार देख देख  दुश्मनी के

जो दुश्मन  हो दुश्मनी का, उससे  मिलना  चाहता  हूँ ।


वो रूँठा बैठा है वहाँ , मैं उसका वादा लेकर बैठा यहाँ 

उस सिरफ़िरे से कोई कह दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।


ख़ामोश है समन्दर भी, वादियाँ भी , और वो ख़ामोशी

मेरी रूह सुनती है , लिहाज़ा उससे मिलना चाहता हूँ ।


फातेह= विजेता। क़ुर्बत= नज़दीकी। वज़ाहत= भव्यता।

किस्सा गो= story teller. बयान ए रसूल= word of prophet.

हमनवाई= हमख़्याली। संग= पत्थर। मुहाल= असम्भव।

 रब्त= मेलजोल। पज़ीराई=अपनापन।

ओम् शान्तिः

अजित सम्बोधि।

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