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Sunday, October 9, 2022

शरद पूर्णिमा

अहा सपने सुहाने, लिए मन के ख़ज़ाने
आई शरद सुहानी, बदले ऋतु के तराने  
चलो गा लें एक गीत
जैसे मिली कोई जीत
निभा लें ऐसी रीति
जिससे बढ़ जाए प्रीति
कौन जाने कब आएंगे, फ़िर ये  ज़माने  
आया मौका सब आजाएं, साथ निभाने ।

क्योंकि वो भी है अकेला, सो रच लिया मेला
खेल खेल में बनाया, उसने दुनिया का खेला
चलो हम भी खेलें खेल
हो जाए ठेलम ठेल
कुछ करलें ऐसा खेल
हो जाए फ़िर से मेल
सबको मिल जाए खेल, कोई आया क्या बुलाने  
आओ सब कोई आओ, आज बुनो ना बहाने।

चाहे वीणा बजाओ, चाहे बरबत बजाओ
चाहे गीत सुनाओ, चाहे गज़ल सुनाओ
बस मन में उतर जाए
दिल में ठहर जाए
ऐसा हो किरदार 
सबके मन को है भाए
यही तो  ज़रूरी  प्यार के झरने बहाने 
जिससे हो जाएं सच्चे, सबके सपन सुहाने। 

आज शरद की रात और पूनम का चाँद  
रहना होशियार, कहीं ले ना सबको बाँध
ये चाँद बड़ा न्यारा
सबकी आँखों का प्यारा  
तारों की बरात लाया
डाल देगा डेरा
मन में छा गई उमंग, तारे आगये सजाने 
जगने लगा आसमान नई आभा को दिखाने।

 ध्यान पूर्णिमा !
अजित सम्बोधि।

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