बोलने को कुछ बचता नहीं , यही बेबसी है।
सच बोलने में बहुत ही कम वक्त लगता है
इसीलिए तो कम बोलते हैं , यही बेबसी है।
दुनियादारी निभाने को कभी कुछ बोल देते हैं
जो कहते, बेचैन करता सबको, यही बेबसी है।
जो दुनियादार हें, जानते हें कब बोलना मुझसे
उन्हें स्वर्ण हंस चाहिए , उनकी यही बेबसी है।
वो समझते हैं, मरक़ज़ी है शख़्सियत उनकी
बहुत भरोसा है ख़ुद पे, उनकी यही बेबसी है।
मेरे को करना नहीं, सब मालिक कर देता है
मुझे प्रकाश हंस चाहिए , मेरी यही बेबसी है।
जिन्हें झूठ से गुरेज़ नहीं, ख़ूब बोल लेते हैं
उन्हें कुछ न कहिए , उनकी यही बेबसी है।
जिनसे कहना चाहते हैं , उनसे कह नहीं पाते
रास्ता है कि वहीं ख़त्म होता है, यही बेबसी है।
गये थे बाहर दिल बहलाने, बीमारी लेके आगये
घर में दिल बहलता नहीं , उनकी यही बेबसी है।
क्या घर से बाहर न निकलें? ज़रूर निकलिए
बहाने ढ़ूँढ़ के निकलते हैं , बस यही बेबसी है।
सैन्टियागो निकला , ख़ज़ाने की खोज में
पहुँच गया पिरेमिड्स तक, यही बेबसी है।
फ़िर मालूम पड़ा, ख़ज़ाना तो घर पे ही है
पहिले घर पर नहीं देखते , यही बेबसी है।
जो बाहर ढूँढ रहे हैं वो तो अन्दर मौज़ूद है
अन्दर ढूँढना ही सीखा नहीं, यही बेबसी है।
सूर्यदेव नित्यप्रति जीवनदान देते हैं, ऐहसान माना?
पहिले जगकर कभी स्वागत किया? यही बेबसी है।
जहाँ से आता, सूर्योदय जल्दी होता, मैं जल्दी उठता हूँ
यहाँ सूर्यदेव देर से आते, मैं जल्द उठता, यही बेबसी है।
वो खाँसते रहते हैं, किसी को बेचैनी नहीं होती
मैं ठठारता हूँ, सब बेचैन होते हैं, यही बेबसी है।
जहाँ हर तरफ़ मरीज़ ही मरीज़ नज़र आ रहे हें
वहाँ बीमार न होने पर लगता है, यही बेबसी है।
सभी लड़ रहे हें , सब तरफ़ दुश्मन ही दुश्मन हें
इधर में दुश्मन नज़र नहीं आता , यही बेबसी है।
मरक़ज़ी = central. गुरेज़= परहेज़।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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