इन्सान का इन्सान से, इक राब्ता क़ायम रहे
प्यार दौलत मुफ़्त की क्यों ना इसे बाँटा करें
रास्ता बदले भले, दिलसे दिल मिलकर रहे।
ज़िन्दगी एक नज़्म है, क्यो ना इसे गाया करें
रब की है बख़्शीश ये, क्यों ना इसे साझा करें
कमतर है उम्र इसकी क्यों ना दुआ माँगा करें
अपनी ही हमराह ये , क्यों ना सरगोशी करें।
हमनवा बनकर रहें , क़दम क़दम ऐसे चलें
हमदमों का कारवाँ , दम ब दम मिलके चलें
साँस के आने से ही तो , चल रही है ज़िन्दगी
है साँस बेशक़ीमती, हर साँस को गिनते चलें।
रिश्ते तो क़ायम रहेंगे , सरहदें बदला करें
हम न बदलेंगे कभी , मौसम भले बदला करें
वक्त काफ़ी हो चला, इक बात कर लेते अभी
फ़िर मुख़ातिब हो सके, शुक्राना तो अता करें।
राब्ता=रिश्ता। नज़्म=poem. हमराह=co-traveller.
सरगोशी=काना फूसी करना। हमनवा=हमदम=दोस्त।
दम ब दम=पल पल। मुख़ातिब=आमने सामने।
शुक्राना=शुक्रिया। अता करना=देना।
ख़ुशआमदीद ।
अजित सम्बोधि
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