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Friday, December 9, 2022

कहने को बहुत कुछ है

कहने को बहुत कुछ है 
पर कह नहीं पाते 
यादों का ज़ख़ीरा लेकर 
तस्वीर बनाते हैं।

क्या ख़ूब समा लगता था
गुलफ़ाम के डेरे में 
क्या ख़ूब हँसी झरती थी
नूरानी घेरे में।
पलकों के साए में 
हर रोज़ शिगूफ़े थे
वो ख़्वाब थे या गुलरू
मौसम के लतीफ़े थे?
क्यों तारे झकाझक थे
कुछ कह नहीं पाते हैं 
कहने को बहुत कुछ है 
पर कह नहीं पाते हैं।

वो दौरे मुरव्वत था
वो वक़्ते सदाक़त था
कोई इल्म का वारिस था
कोई अक्से नफ़ासत था।
कहीं उलझी फ़िज़ाएँ थीं
कहीं सुलझी निगाहें थीं 
महफ़ूज मुराक़िब था
पुर अम्न दिशाएँ थीं।
क्यों चुप थी रूहे रवाँ
कुछ कह नहीं पाते हैं 
कहने को बहुत कुछ है 
कुछ कह नहीं पाते हैं।

दिल एक मुसाफ़िर है?
फ़ानूसे ख़याली है?
इक अब्रे मुहब्बत है?
बाइस की बहाली है?
बंदिश का मक़्तब है?
मंसूर का मक़्तल है?
बहता हुआ दरिया है? 
गुज़री सी हक़ीक़त है?
क्यों ज्वार उठा करता है 
कुछ कह नहीं पाते हैं 
कहने को बहुत कुछ है 
कुछ कह नहीं पाते हैं।

शबका के साए में 
लमहात गुज़ारे हैं
अल्फ़ाज़ तराशे हैं
गोशे भी सजाए हैं। 
कुछ चाँद के पारा हैं 
कुछ बर्को शरारा हैं 
अज़ली गुलूकारा हैं 
सहरा में सहारा हैं। 
दरिया का किनारा है 
कुछ कह नहीं पाते हैं 
कहने को बहुत कुछ है 
कुछ कह नहीं पाते हैं।

झीनी सी चिलमन थी
अनजान सी थिरकन थी
सूरत में हैरत थी 
बरख़ुर्द सी धड़कन थी।
ये सदा की हरकत थी
या रब की कुदरत थी
हल्का सा इशारा था
अनजान सी बरकत थी।
क्या टूटा वो सितारा था
कुछ कह नहीं पाते हैं 
कहने को बहुत कुछ है 
कुछ कह नहीं पाते हैं।

मस्कूल है मस्ताना
छोटा सा है अफ़साना
ख़ंदालब ओ पेशानी 
छोटा सा है नज़राना। 
गुलरेज़ सभी अपने 
राहत के सभी सपने 
ओढ़े नूरानी चादर
या सूफ़ी क़बा चिकने। 
क्यों ताक रहे ऊपर
कुछ कह नहीं पाते हैं 
कहने को बहुत कुछ है 
कुछ कह नहीं पाते हैं।

कहने को बहुत कुछ है 
कुछ कह नहीं पाते हैं 
यादों का ज़ख़ीरा लेकर 
तस्वीर बनाते हैं।

ज़ख़ीरा=गट्ठर। गुलफ़ाम=प्यारा। नूरानी=रोशन।
शिगूफ़े=लतीफ़े=किस्से। गुलरू=फूलों के मानिंद।
मुरव्वत=दिल में दूसरे के लिए जगह होना।
सदाक़त=ईमानदारी। महफ़ूज़=सुरक्षित। 
मुराक़िब=ध्यानस्थ योगी। रूहे रवाँ=बहती हुई रूह।
फ़ानूसे ख़याली=कल्पनाशीलता। अब्रे मुहब्बत=प्यार 
का बादल। मक़्तब=पाठशाला। मक़्तल=वधस्थल।
शबका=जाल(यहाँ सितारों का)। लमहात=लमहा(बहु.)।
अल्फ़ाज़=लफ्ज़(बहु.)। गोशे=कोने। पारा=टुकड़े।
बर्को शरारा=बिजली और sparks. अज़ली गुलूकारा=
आदिकालीन गायक(ध्यान में उठने वाला नाद)।
सहरा=रेगिस्तान। चिलमन=पर्दा। बरख़ुर्द=ख़ुशक़िस्मती।
मस्कूल=रोशन। ख़ंदालब ओ पेशानी=मुस्कुराते होठ और 
चेहरा। नज़राना=पेशगी।गुलरेज़=जिसमें से फूल
(यहाँ प्रकाश के)झरते हों। क़बा=सूफ़ी चोगा।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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