ये जो हम मना रहे रक्षाबन्धन
ये बन्धन नहीं है , है अनुबन्धन
ये जो धागा अपनों ने बाँधा है
ये प्रेम का ही तो है गठबन्धन।
साड़ी चीर के निकाला था चीर
अंगुली के चीरे पे बाँधा था चीर
भरी सभा में इस राखी ने, नहीं
करने दिया था हरण, वो चीर।
प्रेम बिना भला कहाँ है जीवन
प्रेम से ही तो मिलता संजीवन
मिलना है यदि ख़ुद से, प्रभु से
प्रेम से प्रेम का करें आवाहन।
क्या आपको होता है आग़ाज़
रब कभी होता नहीं नाराज़
प्रेम का बन्धन है कुछ ऐसा
नासाज़ नहीं होता ये साज़।
रक्षाबन्धन की शुभ कामनाएँ।
अजित सम्बोधि।
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