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Thursday, September 7, 2023

कन्हैया से गुफ़्तगू।

कभी तुम रचाया करते थे अनोखा रास 

रातें रातें न रहतीं, बन जातीं थीं सुवास  

बंसी बजती थी, मन में भरता था हुलास 

चाँदनी रातें लगती थीं, हो जैसे मधुमास।


कहते हें आज की रात को तुम आए थे 

आधी थी, अँधेरी थी, जब तुम आए थे।

जीना दुश्वार था, कंस था, अमन न था 

ज़िंदगी महफ़ूज़ बनाने को तुम आए थे।


तुम्हारा कहना है तुम सदा से आते रहे हो 

जब भी दुश्वारियाँ आईं, तुम आते रहे हो।

दुनियाँ में अमन मुकम्मल, करने के वास्ते 

ख़ुद ब ख़ुद, बिला नागा, तुम आते रहे हो।


सालगिरह है तुम्हारी, बंसी नहीं बजती है 

गोलियाँ मगर बराबर, बजती ही रहती हें। 

बंसी कभी कभी, बंदूक़ अक्सर दिखती है 

तुम पर ही बस अब , आस टिकी रहती है। 


मुबारक हो तुम्हें कान्हा जनम दिन तुम्हारा 

इन्तिज़ार है हमको  बहुत दिनों से  तुम्हारा।

यक़ीन है ये पक्का, तुम आओगे तो ज़रूर 

किस रूप में आओगे वो तो भेद है तुम्हारा।


जन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ 

अजित सम्बोधि 

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