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Friday, March 14, 2025

होली मिलन

 मौसम ने लेली करवट, खुशियाँ मना रहे हें 

जिसको हें कहते होली, वो  हम  मना  रहे हें।


कलियाँ हें मुस्कुराती, भँवर  गीत  गा  रहे  हें 

किलकारियाँ जम गई थीं, अब सुन पा रहे हें।


आसमाँ झुकने लगा है, तारे खिलखिला रहे हैं 

 रातों की ये मुसालमत, फ़िर से देख  पा रहे हें।


किसलय हें फूटते जब, होली का  होता  आना 

अंकुर उकरते  मन में, अपनों  का  होता  आना।


होली मिलन का सपना, हर  कोई  देखा  करता 

मिलते  हैं  रूँठे  कैसे, नज़ारा  भी  देखा  करता।


तासीर ए गुलाल ऐसी, हर कोई  हँसने  लगता 

खुशबू ए अबीर ऐसी, हर कोई महकने लगता।


सुनसान फ़लक के नीचे, हूँ  रहता  तन्हाई में मैं 

मन  के  इक  कोने  में बसाके, रखता  होली  मैं।


मुसालमत = सन्धि करना जैसे तारों ने करी हुई है।

किसलय = नये पत्ते। तासीर ए गुलाल = गुलाल 

की प्रक्रति। ख़ुशबू ए अबीर = अबीर की ख़ुशबू।

फ़लक = आसमान। तन्हाई = अकेलापन।


सभी को होली की शुभकामनाएँ 

अजित सम्बोधि 

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