जोहै मिल गया मुझे भूलसे, उसे क्योंन दिलमें पनाह दूँ ।
तुझे याद हो कि न याद हो, मुझे याद है वो वाक़या
बिन हुए सब हो गया, अब कैसे कर इनकार दूँ।
क्या बात ऐसी हो गई, हर सिम्त जैसे खो गई
फ़िज़ा ने जिसको भुला दिया, मैं क्यों न उसको सँवार दूँ।
ये जो रात दिन का मेल है, ये भी आश्ना का खेल है
जब आसमाँ भी झुक गया, मैं क्यों न उसको ज़बान दूँ।
मुझे क्या पता मेरी ज़िंदगी, अभी कैसे गुल खिलायेगी
जो शिगाफ़ बन के सता रही, उसे क्योंन सीने में दफ़्न दूँ।
तेरा राज़ मेरा भी राज़ है, पर रास्ते हैं बदल गये
जिसे हम निभा पाए नहीं, उसे क्यों न राज़ ही रहने दूँ।
मैं वक़्त का मारा हुआ, और तुम तजाहुल हो गये
ग़र वक़्त इक महबूब है, मैं क्यों न उसको बख़्श दूँ।
ये जुस्तजू मुझे बारहा, हमज़ात बनके मिटा गई
जो बनके बिगड़ती गई, उस नक़्श को क्या नाम दूँ।
सिम्त= दिशा। आश्ना= याराना। शिगाफ़= दरार।
तजाहुल = दोस्त का अनजाना बन जाना।
जुस्तजू= तलाश। बारहा= बार बार।
हमज़ात= एक ज़ात।नक़्श= तस्वीर।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
No comments:
Post a Comment