परस्तिश भी करते हैं , ज़ियारत भी करते हैं
जहालत की भी ख़रीद ओ फ़रोख़्त करते हैं
ख़ुद को ढूँढे बग़ैर मगर, तुझको ढूँढा करते हैं।
तुझे पता नहीं कैसे मिलती चाहत मुझको?
तुझे पता नहीं कैसे मिलती राहत मुझको?
ज़िन्दगी एक वीरान चुलिस्ताँ बन जाती
तेरी मुस्कान न देती ग़र ताक़त मुझको!
दर्द कमतर नहीं होता दर्द दुनिया बदलता है
दर्द क़ालिब है कि जिसमें हर कोई ढलता है
दर्द धरती का देखकर , बादल सिसकता है
धरती जब जब तड़पती वो रो रो बरसता है।
सूरज है करता , इन्तिज़ार सुबह का
शबगीर को रहता , इन्तिज़ार रात का
किसी ना किसी का हर किसी को इंतिज़ार
आख़िर है भूखा हर कोई प्यार का।
निकले जो बात दिल से सुनता है दिल ठहर के
साँसें भी ठहर जातीं , आँसू भी ढलते रुक के
घबरा के ग़मों से कभी मायूस न हो जाना
बरसेगी उसकी रहमत थोड़ा सा ठहर कर के।
मुझे तुमसे मिलना है तुम समझते क्यों नहीं?
बहुत कुछ कहना है तुम समझते क्यों नहीं?
माना कि मैं अहमक मगर तुम तो आलिम हो
मुझे ख़ुद से मिलना है तुम समझते क्यों नहीं?
मशक़्क़त= मेहनत।परस्तिश = पूजा।
ज़ियारत= तीर्थयात्रा।जहालत = बेवक़ूफ़ी।
ख़रीद ओ फ़रोख़्त= ख़रीदना और बेचना।
चुलिस्ताँ= desert devoid of any oasis.
क़ालिब= ढाँचा। शबगीर= रात में गाने वाला पक्षी।
अहमक= बेवक़ूफ़।आलिम= ज्ञानवान।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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