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Wednesday, October 21, 2020

मैं और तुम

मैंने सोचा न था और ये क्या हो गया
हस्बे आदत जब तुमपे फ़िदा हो गया
मैं तो ज़र्रा था  बिस्मिल बियाबाँ  का
तुमसे मिलकर के मैं आसमाँ हो गया।

 क़तरा ए आब को जब होश हो गया
तेरी पुश्तपनाही से वो समंदर हो गया
ये मेरी चाहत थी या तेरी नियामत
तुझसे मिला 'मैं' और रफ़ा हो गया।

मैं सफ़ा से मिला और सफ़ा हो गया
दर्द मुझसे मिला और दफ़ा हो गया
वो वाक़िया फ़िर अफ़साना हो गया
ख़फ़ा मुझसे मिला नाख़फ़ा हो गया।

 हस्बे आदत = आदत से मजबूर।
बिस्मिल बियाबाँ = उजाड़ जंगल।
 क़तरा ए आब = पानी का टुकड़ा।
पुश्तपनाही = कृपा।नियामत = gift.
“मैं”= ego. रफ़ा = दूर। सफ़ा = पवित्र।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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