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Monday, October 26, 2020

बता न

ग़र तू पुकारेगा, राधा आएगी कि नहीं
ग़र तू नचाएगा, राधा नाचेगी कि नहीं
एक दीगर ज़ुबाँ है जो दीदावर समझते हैं
ग़र तू मुस्कुरायेगा, इबादत होगी कि नहीं।

उम्र घटती जा रही, हवस घटती क्यों नहीं
तीरगी बढ़ती रही, चिराग़ जलते क्यों नहीं
इबादत की इन्तिहा, कभी होती है नहीं
वक़्त थम जाएगा, गर्द होता क्यों नहीं।

झुरमुट से झाँके चाँद, सब देखते क्यों नहीं
वो बेपर्दा हो रहा, हिम्मत दिखाते क्यों नहीं
माँगा था तू ने एकबार यशोदा से इसे कभी
नज़ारा नफ़्से नज़र, नज़र उठाते क्यों नहीं।

चंदन का सुतून मैं, तू काटता क्यों नहीं
तिल्ला का डला मैं, तू गलाता क्यों नहीं
तू ही तो मुकद्दर है मेरा, मैं हूँ तेरे हवाले
बावर नहीं है ग़र, आज़माता क्यों नहीं।

जब से देखा है तुझे, होश आता क्यों नहीं
तू आफ़ताबे नूर, सब को दिखता क्यों नहीं
तू तो है मेरा बातिन , मैं पड़ा हूँ ख़ाक़ में
ये सब माजरा क्या है, तू बताता क्यों नहीं।

वो दिन जो कभी थे, वापस आते क्यों नहीं
वो सरगोशियाँ शोखियाँ वापस आते क्यों नहीं
क्या ऐसी ख़ता हुई, जो इतनी सज़ा दे दी
छोड़ा जो तुमने एक बार, वापस आते क्यों नहीं।

दीदावर = जौहरी।तीरगी = अँधेरा। सुतून = तना।
 तिल्ला = स्वर्ण। बावर = यक़ीन। बातिन = अन्तर्मन।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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