ये कैसी भंग है इसकी लत जाती क्यों नहीं?
क्या हम कोई मशीन हैं जो लड़ते ही रहेंगे?
समझदारों जैसे शराफ़त से रहते क्यों नहीं?
हर ज़माने में कुछ अक्लमंद भी होते रहे हैं
वो समझदारी से बिना लड़े रहते भी रहे हैं
कैसे रहना चाहिए इस बाबत बताते रहे हैं
फ़िर ये कौन हैं जो माहौल बिगाड़ते रहे हैं?
क्या ये वो हैं जो बाज़ुओं को फ़ड़काते रहते हैं?
या बिला वजह अपनी मूँछों को मरोड़ते रहते हैं?
या मूँछें न हों तो ज़ुबान से कुश्ती लड़ा करते हैं?
ग़रज़ ये कि अपनी अहमियत को गिनाते रहते हैं?
उन्हें एक बार देखना होगा उगते हुए सूरज को
नीले आसमान में उड़ते हुए रंगीन परिन्दों को
वो दूर दिखते हुए पहाड़ों की ऊँची चोटियों को
और आहिस्ता आहिस्ता से बह रही नदिया को।
ग़ौर करना होगा उन्होंने बनाया है क्या क्या?
परिंदे, पहाड़, फ़लक में से गढ़ा है भला क्या?
सूरज को उगना सिखाया या हवा को बहना?
इन नायाब तोहफ़ों में उनकी शराकत है क्या?
जनाब ये ख़ज़ाना बिना माँगे मुफ़्त में मिला है
ये सुकूत भीऔर सुकून भी सौग़ात में मिला है
और आप हैं कि जंग में इसे बरबाद कर रहे हैं
आप बहुत बड़ी एहसान फ़रामोशी कर रहे हैं।
ग़ुरूर छोड़ कर बनाने वाले की तारीफ़ कीजिए
जिसने बख़्शा है उसका शुक्रिया अदा कीजिए
लड़ना झगड़ना छोड़ के सुकून से रहना सीखिए
ये करिश्मे हैं इन्हें देख कर मुस्कुराना सीखिए।
फ़लक=आसमाँ।नायाब=unique, अनोखा।
शराकत=योगदान।सुकूत=शान्ति।सुकून=चैन।
एहसान फ़रामोशी=एहसान न मानना।ग़ुरूर=घमण्ड।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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