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Friday, October 9, 2020

लमहात का ख़्याल रखना

हाँ हर पल जीना, होश में रह कर जीना
ख़ुद सम्हल के, इन्हें सम्हाल कर जीना।

बड़ी मुश्किल से मिले हैं, इन्हें खो न देना
बेशकीमती हैं, कभी इनको भुला न देना।

कोई नज़रें चुराये, फ़िर भी मुस्कुरा देना
कभी ना मुराद होकर, बस रो मत देना।

कि वो ही पहल करे, ये भी ज़िद न करना
ख़ुद ही चले जाना, लमहे न ज़ाया करना।

वो दिल में उतर गये, और क्या जो करना
हस्बे आदत, लमहात को सजा के रखना।

मायूस रहूँ कोई हर्ज नहीं, मुझे मासूम ही रहने देना
ज़िंदगी इतना रहम करना, मुझे इंसान ही रहने देना।

मुझे तारीकी से डर नहीं, मगर उजालों में रहने देना
मैं ग़ुलूकार नहीं तो क्या, बस मौसिकी में बहने देना।

मैं क्या माँगूँ, मुझे है पता, तेरा बिना माँगे ही दे देना
लगता है जैसे तेरा काम है सिर्फ़ बख़्शीश का देना।

तारीकी=अँधेरा। ग़ुलूकार =गायक। मौसिकी=संगीत।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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