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Saturday, October 10, 2020

भगवान और भला इंसान

एक पुराना मक़ूला है:भोले में भगवान  
ऐसा ही एक और है: भोले के भगवान
अब भगवान तो कहीं नज़र आता नहीं
क्या इसलिए दिखता नहीं भोला इंसान?

भोला होता ग़ज़ाला, बिल्कुल मस्तमौला 
हावला बावला वो , जानता न रामरौला। 
वो तो धोखा खा खा के भी रहता  भोला 
हक़ताला का ख़ादिम, वो सुहेला औला। 

इस मक़ूले से आपका पड़ा होगा वास्ता
जब आप उलझन में थे, ख़ुदा न ख़ास्ता।
समझ में न पड़ा होगा कि अब क्या करें
 एक भला इंसान आया बता गया रास्ता।

ख़ज़ाना तो बिखरा पड़ा है, भगवान का
आप नहीं मानते हैं तो बतादें है किसका?
हर फूल में मौजूद, रंग भर रहा रंगरेज़ है
नहीं दिखता है फ़िर तो फ़र्क़ है नज़र का।

भगवान से मिलना है, भला इंसान देख लो
जिसकी नज़र में न कोई बुरा ऐसा देख लो।
ज़ियादह ज़हमत न उठाना तलाश करने में
तुम्हारे दिल में बैठा वो, बात करके देख लो।

मक़ूला= कहावत। ग़ज़ाला = बच्चा हिरन।
रामरौला= हल्ला करना। हक़ताला= रब।
ख़ादिम= सेवक। सुहेला= सुख दायक।
औला= अति उत्तम। ज़हमत= परेशानी।


ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


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