बुद्ध ने उसे उत्तरीय से पोंछ दिया।
कहा, क्या कहना चाहते हो, कहो
आनन्द ने कहा, कमाल कर दिया।
जो दंड का अधिकारी है, कहते हो
उससे, क्या कहना चाहते हो, कहो।
बुद्ध ने कहा वो कुछ कहना चाहता है
आवेग तीव्र है अतः कह नहीं पाता है।
वह आदमी चला गया, घर पे रोता रहा
दूसरे दिन बुद्ध के पाँव में गिर जाता है।
आनंद की समझ में कुछ नहीं आता है
बुद्ध बोले जो देते हैं, वही लौट आता है।
आदमी जो देता है, वही वापस पाता है
स्नेह देने वाला बराबर स्नेह ही पाता है।
नफ़रत करने वाला देखता रह जाता है
जो देते हो कई गुना बनके आ जाता है।
न माँगने की ज़रूरत, न कुछ बोलने की
बिना आवाज़ किए ख़ुद चला आता है।
जब किसी के हाथ पर हाथ रख देते हो
बिना कुछ परोसे, बहुत कुछ दे देते हो।
जब किसी को गले से लगाया करते हो
बिना बोले बहुत सा कह दिया करते हो।
जो बात ज़ुबान कहने में नाक़ाबिल होती
वही इस तरह बयान कर दिया करते हो।
जब कोई आपके पाँव में आके गिरता है
ये न समझ लें वो आपके आगे झुकता है।
भाषा असमर्थ है, वह बता नहीं सकती है
इसलिए वो उसको प्रत्यक्ष करने लगता है।
वह अपने ह्रदय में एकीकृत होने लगता है
और सार्वकालिक के आगे झुकने लगता है।
एकीकृत=crystallised. सार्वकालिक=everlasting.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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