क्योंकि मेरा हक जो है, अपने एहसास पर।
ये एहसास कोई छीन नहीं सकता है मुझसे
न तुम्हारा न किसी और का हक है इस पर।
तुम सामने नहीं आते , ठीक है तुम्हारी मर्ज़ी
मैं बुरा मानू या न मानू, यह भी तो मेरी मर्ज़ी।
तुम्हारे एहसास से चेहरे पर जो आती रौनक
तुम चाहो तंज कस दो , यह मेरी है ख़ुदग़र्ज़ी।
सच तो यह है तुम बिन बोले मुझसे बोलते हो
और बिना छुए भी मुझे हरदम छुआ करते हो।
अब मुझे ख़ौफ़ नहीं लगता है इन तन्हाइयों से
तुम दूर रह करके भी मेरे पास जो बने रहते हो।
पहले ख़ौफ़ था मुझे, तुम्हें कोई चुरा ले जाएगा
धड़कनें बढ़ जातीं, लगता कि दिल टूट जाएगा।
अब मुझे डर नहीं सताता, तुम्हारी बेवफ़ाई का
मेरा एहसास शदीद है, मुझे छोड़ के न जाएगा।
शदीद = प्रबल।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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