ये बैल्कनी का कोना भी ख़ूब लुभाया करता है
ये जामुन का पेड़ इसे गोदी खिलाया करता है।
सोचते होंगे तमाशाई हूँ, इसलिए बैठा करता हूँ?
यह गोशा मेरा चारागर है इसलिए बैठा करता हूँ।
कितने अफ़सानों का गवाह रह चुका है ये कोना
इसे ख़बर रहती है सारी, इसलिए, बैठा करता हूँ।
था तो मैं बंजारा मगर बाशिंदा बना दिया था मुझे
फ़िर से बन्जारा बन जाऊँ क्या? सोचा करता हूँ।
हर लम्हा मेरे माथे पे उम्र का टीका लगा जाता है
मैं यादों का पुलिंदा खोल कर उसे सूँघा करता हूँ।
वक़्त का झोला बख़ूबी कंधे पे लटकाए रखता हूँ
रात में रात के कंधे पे सिर रखके सोया करता हूँ।
तमाशाई= तमाशा देखने वाला। गोशा= कोना
चारागर= हकीम। अफ़सानों = किस्सों।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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