सब कुछ तो दिल में रक्खा है।
जोभी दुनियाँ से कह नहीं पाते
उसको दिल में छिपा रक्खा है।
दिल से बढ़ कर, दोस्त कौन है
सब कुछ इसे ही बता रक्खा है।
हरेक अपना फ़ायदा ढूँँढता है
सबको बताने में क्या रक्खा है।
आसमाँ से बड़ा निगहबाँ कौन
सभी कुछ उसे दिखा रक्खा है।
लोग मरने पर धोते हैं, सजाते हैं
मैंने ज़िंदा दिल में सजा रक्खा है।
आहोदर्द कहीं बाहर रिस न जाऐं
मुँह पे इक ढक्कन लगा रक्खा है।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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