Popular Posts

Total Pageviews

Tuesday, June 1, 2021

एक दर्जी (ओशो की कहानी के मुताबिक)

एक दर्जी था बड़ा नेक इन्सान
छोटी सी दुकान, थोड़ा सामान
बस एक ख़्वाहिश थी, दिल में
लौटरी मिले, जीना हो आसान।

एक दिन लौटरी निकल भी गई
उस रात उसकी नींद, भाग गई
रोज़ सोता था बेफ़िक्री की नींद
वह रात करवट बदलने में, गई।

सुबह में दुकान में ताला लगाया
चाबी को कुंए में फेंक के आया
सुख के साधन जुटाने लग गया
पहली दफ़ा दारू कवाब लाया।

यारई की महफ़िलें शुरू हो गईं
रातें भी रंगीन सी होने लग गई
ताश पत्ते और दांव शुरू हो गये
दिन में रात, रात में दिन हो गए।

इधर एक साल बस ख़त्म सी हुई
उधर रकम भी सब, ख़त्म हो गई
अभी तक जिनसे , वाक़िफ़ न था
वही बीमारियां अब, अंग लग गई।

कुंए में घुस के, चाबी ढूंढ के लाया
ताला खोल के, दुकान को जमाया
ख़ुशी के दिन थे या, ख़्वाब था यह
सोचा तो करता, समझ में न आया।

एक बार फ़िर से लौटरी खुल जाए
तो सचमुच में ख़ुशी लौट कर आए
कुछ पैसा ग़र, हाथ में आ जाए तो
इन बीमारियो का , इलाज हो जाए।

एक दिन फ़िरसे लौटरी खुल भी गई
दुकान बंद हो गई , चाबी कुंए में गई
अब तो रातों में जगने से वाक़िफ था
इसलिए रात प्लानिंग में गुज़रती गई।

अब दोस्ती का पायदान ऊंचा हो गया
रम की जगह शैम्पेन का जाम हो गया
अब दांव भी कुछ ऊंचे लगने लग गये
दोस्ती में अब ज़न का आग़ाज़ होगया।

मर्ज़ बढ़ते गए ज्यों-ज्यों दवा किया करे
दांव बढ़ते गए ज्यों-ज्यों मना किया करे
वो हुआ हश्र जिसका अंदेशा था शुरू से
जेब खाली हो गई ख़ूब मिन्नतें किया करे।

फ़िर कुंए में उतरा, चाबी को ढूंढने के लिए
वापस न आया गया दुकान चलाने के लिए
मर्ज़ इतने गहरे हो चुके थे इस दौरान , कि
तीसरी लौटरी भी होती बेमानी, उसके लिए।

ओशो का कहना मुतवातिर यही होता है
माना कि दुःख वाकेई में ही दुःख होता है
सुख अलहदा किस्म का दुःख ही होता है
सही काम तो शून्योतर शांन्ति में, होता है।

ज़न= ज़नानी, महिला। मुतवातिर= निरंतर।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।






No comments:

Post a Comment