मेरे मर्ज़ का जवाब है वह , मेरी मुजीब है।
वो शबरंग है मगर उसका दिल शफ़्फ़ाफ़ है
वो कहीं पर भी हो, मगर होती मेरे क़रीब है।
वह मेरे दर्द को जानती है , दुहराती रहती है
मानो उसका ख़ुद का दर्द है, बेहद नजीब है।
उसकी कुहू कुहू से एक हूक सी उठा करती है
जिससे दिल की हालत होती अजीबो-गरीब है।
ऐसेमें उसका तराना, मेरे मन से मेल खाता है
लगता है मेरे लिए गाती है, मेरा ज़हेनसीब है।
वो मेरे क़रीब बनी रहे, यही दुआ मैं करता हूँ
उसकी क़राबत पे मैं उसको सलाम करता हूँ।
हबीब= प्रिय। मुजीब= हूँकारा भरने वाला।
शबरंग= काली। शफ़्फ़ाफ़= निर्मल।
नजीब= कुलीन। ज़हेनसीब= अहो भाग्य।
क़राबत=निकटता।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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