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Thursday, September 16, 2021

उड़ गया

तोड़ कर के बन्दिशें सारी, परिन्दा उड़ गया
छोड़ करके महफ़िलें सारी, परिंदा उड़ गया।

सफ़र तै न हो सका, सफ़रनामा लिख गया
छोड़ कर सहन, दिल का परिन्दा उड़ गया।
 
मंज़िल मिली नहीं, नश्तर मगर, जड़ गया।
करके वीरान चमनिस्तान, परिंदा उड़ गया।

वक़्त बहलाता रहा, हम बहलते रह गये
ऐसे चली हवाऐं, बादबान सारा उड़ गया।

हाथ कुछ आया नहीं, फ़ैसला भी हो गया
कूच का फ़रमान था और परिंदा उड़ गया।

रगे जाँ को क्या, यह ख़बर न थी मिल सकी
तहफ़्फ़ुज़ दिलाने का, वसीला ही उड़ गया?

ऐ आसमाँ आबाद रह, तुझको तो है सारी ख़बर
हर बार का किस्सा यही, जो भी आया उड़ गया।

सहन=आँगन।बादबान= पाल।तहफ़्फ़ुज़= सुरक्षा।
रगे जाँ= main nerve. वसीला= ज़रिया।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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