किस किसको छोड़के आई, किसी ने न पूछा।
सोचा मिलता चलूँ दिल हलका ही हो जाएगा
कहाँ को जा रहे हो, उन्होंने तो ये तक न पूछा।
लोग बड़ा ख़्याल रखते हैं , हरेक बदहाली का
टूटने पर भी कैसे मुस्कुरा लेते हो, उन्होंने पूछा।
जैसे अँधेरों में जुगनू मुस्कुराते हैं, मैंने कहा था
कितनों का भला किया था , उन्होंने फ़िर पूछा।
अच्छे होने पे क़ीमत तो चुकानी ही पड़ जाती है
आपकी दुआ है, बोल देता हूँ, जिसने जब पूछा।
किस के हक़ में दुआऐं किया करते हैं आजकल
किस के दिल पे हुकूमत करनी है? उन्होंने पूछा।
बदसलूकी करने की मेरी फ़ितरत नहीं है, साहिब
मेरे दिल पे किसकी हुकूमत है, आपने नहीं पूछा।
ज़िन्दगी भर की कमाई गँवा कर आये हो क्या?
मुझको मालूम पड़ा जब आईने ने सवाल पूछा।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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