लख़्ते जिगर था , नूरे चश्म था , है न?
मुझको पाने के लिए कितने उतावले थे?
अपना सारा प्यार सौंप रहे थे मुझे, है न?
मुझमें कोई नुक्स नज़र न आता था तब
मैं फ़रिश्ता सिफ़त हुआ करता था, है न?
ग़लत होने से पहले तो सब सही था, है न?
सब सही था तो ग़लत कैसे हो गया, है न?
मैं वहीं खड़ा हूँ जहाँ से क़दम मुड़े थे, कभी
ये बाहें खुली मिलेंगी आज भी , पता है न?
मुहब्बत तो दिल को दिल से हुआ करती है
दिल से पूछ के देखना, क्या कहता है, है न?
लख़्ते जिगर= जिगर का टुकड़ा।
नूरे चश्म= आँखों की रोशनी।
फ़रिश्ता सिफ़त = फ़रिश्ते के मानिंद।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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