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Monday, November 29, 2021

कुछ यादें

वो दिन भी क्या थे आज जो याद आ रहे हैं
कुछ चाहने वाले  भी फ़िर से याद आ रहे हैं
बरसों से परतें पड़ी हैं, कुछ धूल भी उन पर
फ़िर अचानक आज वो  क्यों याद आ रहे हैं।

कुछ तो हुआ जो शमा जलती रही है रात भर
कौन था जिसका इंतिज़ार करती रही रात भर
कोई यूं ही तो जलाता नहीं है ख़ुद को रात भर
कौन है वो जिसका रास्ता रौशन किया रात भर।

छोटे से लम्हों में बहुतकुछ सिमट जाया करता है
बहता हुआ वक्त भी उनमें बंद हो जाया करता है
यादों की परतें हटाके जब वो तसव्वुर में आता है
घोर अंधेरों में तब कोकाब , कौंध जाया करता है।

पेड़ को काटते वक्त न ख़याल आया होगा उसको
किसी को काटने का हक़ , किसने दे दिया उसको
धूप में जिस दिन सिर जलेगा और पैर के तलवे भी
क्या कर दिया शायद ये ख़्याल आजाए तब उसको।

जहां मिलते हैं दानिशवर मुझको वो जगह बता दे
जहां मिलते  सुखनवर मुझको वो किशवर बता दे
जलवत में ख़लवत का मुझमें एहसास जो करा दे
ऐसा मोतबर रहबर कोई ऐ मेहरबां मुझको बता दे।

बहार आती है तो साथ में ज़िन्दगी चली आती है
ख़िज़ा आती है दर्द बनके, कविता चली आती है
ज़िन्दगी ज़ियादह जिया हूं , इससे लगता है मुझे
कविता ख़िज़ाओं को बहार बनाती चली आती है।

तसव्वुर= ख़्यालों में। कोकाब= चमकीला सितारा।
दानिशवर= समझदार। सुखनवर= नग़मा निगार।
किशवर= गांव। जलवत= हंगामा। ख़लवत= तन्हाई।
मोतबर= भरोसेमंद। रहबर= मार्ग दर्शक।

ओम् शान्ति: 
अजित सम्बोधि।



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