चांदको न बना लेना दिलबर अपना
उसने क्या कभी देखा साया अपना?
ख़ुद को ही रखना है ख़्याल अपना।
ख़ूब देखा करें सुहाना सपना अपना
सुकून मिलेगा सिर झुकाने पे अपना।
यूं ही भटका करोगे सहरा ए सराब में
जब तलक न मिटाओगे गुरूर अपना।
वो है तो महक जाता हूं कभी न कभी
वरना मुझमें क्या है कहने को अपना।
बिना उसके ज़िन्दगी लगती थी सपना
कुछ न था जिसे कह पाता मैं अपना।
जब से थाम लिया है उसका ये हाथ मैंने
सारा जहां लगता है मुझे अपना अपना।
सहरा ए सराब= म्रगत्रष्णा का रेगिस्तान।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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