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Monday, January 17, 2022

बद्र: 17 जनवरी 2022.

माह ए आसमां  मेरे  अन्दर  समा   जाओ
रोशन  करो  आके  मेरी  रूह  बन  जाओ
तुम्हें देखूं दमकता मैं , बाहर भी अन्दर भी
तुम्हीं मेरी मुहब्बत के, किरदार बन  जाओ।

तुम्हें  देखता  जब  भी , दिल  शाद  होता  है
तन्हाई  में मिलकर  जिगर  आबाद  होता  है
कैसे  बताऊं  तुमको और  क्या क्या होता है
तुम्हारे  नूर  में  धुलके , चेहरा  पाक  होता है।

तुम्हीं  मेरे  सूनेपन से  मुझको तार  देते  हो
तुम्हीं मेरे अकेलेपन में मुझको प्यार देते हो
जब तुम नहीं होते हो,  रातें  कहर  ढाती हैं
तुम्हीं भय की ज़ंजीरों को मेरी काट देते  हो।

तुम्हीं मेरे कलन्दर हो अब ये मान  लेता हूं
तुम्हीं मेरी मुहब्बत हो अब ये जान लेता हूं
बिना तेरी रज़ा के कुछ भी हो नहीं सकता
ये  फ़ैसला   अपनाकर    सनद   लेता   हूं।

तुम्हें मैं आज़मा लूं ऐसा मेरा जी करता है
नज़रिया परखनेका  बदल दूं जी करता है
दुनियां तो ऐसा करने को मीज़ान बनती है
मैं  आंखों  में  बसा  लूं  ऐसा  जी करता है।

माहे  आसमां   मेरे  अन्दर  समा  जाओ
रोशन करो आके  मेरी  रूह  बन  जाओ
तुम्हें देखूं दमकता मैं, बाहर भी अन्दर भी
तुम्हीं मेरी मुहब्बत के, किरदार बन जाओ।

बद्र= पूर्णिमा का चांद। माह ए आसमां=
आसमान का चांद। शाद= ख़ुश। कलंदर=
 दरवेश। सनद= प्रमाण। मीज़ान= तराजू। 
किरदार= अदाकार।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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