वो ही न जिसकी आवाज़ से इबादत आती है।
मेरा दिल ही मेरा आईना बन गया है अब तो
जब देखता हूँ उसी की सूरत नज़र आती है।
कभी मिल जाए तो कदमों में दुआ कर लेना
अगर लगे आँखों में जुगनू की झलक आती है।
पास से गुज़रती हवा को कभी छू लिया करना
वो महक बाँटने को ही इधर से चलके आती है।
चाँद को देखा है कभी तारों से भरी रात के बीच
जब भरी बारात में चाँदनी उसे छोड़ के आती है।
ठीक है तारे फ़र्ज़ निभाते हैं, सम्हालते हैं उसको
पर उसके संग में तो ख़ामोशी ही नज़र आती है।
दर्द में पैबन्द लगाने से दर्द ठीक नहीं हो जाता
लबों की बात तो आँखों में छलक ही आती है।
वैसे दर्द आऐं तो मायूस न हो जाना ऐ मेरे दिल
उसका निज़ाम है , दवा कोई चली ही आती है।
हार जब आती है तो कुछ, सिखा भी जाती है
ठोकर खाने के बाद राह, निकल भी आती है।
हैरान न होना पत्थरों के भी दिल हुआ करते हैं
कभी पाओगे कि पत्थरों से सदा भी आती है।
कितनी-कितनी दफ़ा बिका हूँ मीठे बोलों पर
अब कोई मुस्कुराता है , इक याद चली आती है।
इतने बड़े जहान में कोई तो होगा चाहने वाला
अँधेरों की पर्तों में से किरन निकल भी आती है।
कभी इतना मायूस भी न होना कि साँस टूट जाए
जुस्तजू क़ायम रहे तो मंज़िल भी चलके आती है।
ज़िन्दगी तो दरिया है, गिरदाब आया ही करते हैं
उसकी नज़रे करम हो तो कश्ती निकल आती है।
वो फ़रिश्ता था उसको आदमी समझ लिया गया
मगर याद तो आदमी की फ़रिश्ता बनके आती है।
इबादत= पूजा। इल्तिज़ा= प्रार्थना। निज़ाम=
बंदोबस्त। सदा= आवाज़। जुस्तजू= तलाश।
गिरदाब= भँवर।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि। ़
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