न हो बला से खरीदार, आओ सच बोलें।
सुकूत छाया है इंसानियत की कद्रों पर
यही है मौका ए इज़हार, आओ सच बोलें।
हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना
बनाम ए अज़्मत ए किरदार, आओ सच बोलें।
सुना है वक़्त का हाकिम बड़ा ही मुंसिफ है
पुकार कर सर ए दरबार, आओ सच बोलें।
छुपाए से कहीं छिपते हैं दाग़ चेहरे के
नज़र है आईना बरदार, आओ सच बोलें।
सुकूत = ख़ामोशी
बनाम ए अज़्मत ए किरदार= किरदार की इज़्ज़त के नाम पर
सर ए दरबार= महफ़िल में
नज़र है आईना बरदार= ख़िदमत में आईना लिए खड़ा है ख़ाकसार।
ओम् शान्ति:
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