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Saturday, February 5, 2022

बाहर बसंती हवा बह रही है।

बाहर  बसंती  हवा  बह   रही  है
देखो वो तुमसे क्या  कह  रही  है।
सुन लो वो तुमसे जो कह रही  है
बातें रफ़ाक़त की  वो कह  रही है।
मुझे  बंद   रहना  आता  नहीं   है
दिल की न सुनना  भाता  नहीं  है।
नज़रें  चुराना  भी  आता  नहीं  है
बहाने  बनाना भी  भाता  नहीं  है।

ज़रा द्वार खोलो बहार आ खड़ी है
ज़रा आँखें खोलो, बसंती खड़ी  है।
बाहर तो आओ, फिज़ाएं  दिखाऊँ 
चुहलबाज़ी करती, मौजें  दिखाऊँ!
ज़रा  मुस्कुराओ, चमेली  खड़ी  है
पहली किरण की, सहेली खड़ी  है।
उधर देखो  कैसी, नवेली  खड़ी  है
रातों  की   रानी   पहेली  खड़ी  है।

मौसम की पहली किरणें  तो  देखो
सुनहरी सी रश्मि  मचलती तो देखो।
वो हवाओं में उड़ते बगुलों को देखो
खुले आसमाँ में वो कुरजों को देखो।
कैसे  महकती   हैं   मंजरियाँ , देखो
शाखें  भी  कैसे  थिरकती  हें, देखो।
वो बहारों से आगे  बहारों  को  देखो
इधर आओ  देखो गुलाबों  को  देखो।

वो बुलबुल की गुलगुल तुमको सुनाऊँ 
वो  चोंचों  की  चूँ  चूँ   तुमको  सुनाऊँ!
पानी की सरसर है बतख़ों की फरफर
वो  ऊपर  से गिरते झरनों की झरझर।
वो फूलों पे उड़ती  तितली  को  देखो
शबनम  की बूँदें  फिसलती  तो  देखो।
बसंती  हवाओं   से  तुमको  मिलाऊँ 
महकते  गुलशन  को तुमसे  मिलाऊँ!

देखो   बसंती   हवा   सुन   रही    है
वो मेरी ज़रूरत को ख़ुद सुन  रही  है
गुनगुनाहट  को  मेरी वो सुनपा रही है
धड़कन  की  आवाज़  वो  सुन रही है
बहारों  से  मुझको  शिकायत  नहीं  है
पुरवय्या   मुझको   लुभाती   रही    है
 साँसों  में   ख़ुशबू   समाती   रही    है
वहशत   से  मुझको   बचाती   रही  है।

रफ़ाक़त= मेलजोल। वहशत= पागलपन।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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