तुम्हारी कमी खलती है, खलती रहा करेगी।
कैसे कह दूँ मैं यह कि तुम नहीं हो यहाँ पर
वो कुर्सी, वो मुढ्ढा, सभी कुछ तो है यहाँ पर
बस इंतिज़ार कर रहा हूँ कि तुम आ रही हो
और अपने अंदाज़ में आके बैठोगी यहाँ पर।
तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें, ताज़ा हैं यहाँ पर
बस तुम्हीं नहीं हो, कोई शै क्या माना करेगी?
आख़िर हुआ क्या था, कैसे यह सब हो गया?
सब कुछ तो ठीक था , फ़िर कैसे ये घट गया?
क्या हमसे ख़ता हुई , या क़िस्मत का खेल ये?
ज़िन्दगी का पहिया , अचानक से , रुक गया?
सर्द सुबह की धूप क्या मुंडेर पे आया करेगी?
क्या रौनके मानूस इधर से अब गुज़रा करेगी?
जब मिले थे तो बहुत कुछ वादे किए थे, है न?
आँखों में सपने कितने सजाया किए थे , है न?
मुझे याद नहीं बिछड़ेंगे, ये ज़िक्र किये थे क्या?
या कि जानकर इसे नज़रन्दाज़ किए थे , है न?
हमारी क़िस्मत की तो, सभी ने तारीफ़ की थी
ये किसको अंदाज़ था , शाम ऐसे ढला करेगी?
आख़िरी वक्त भी न सोचा, ये आख़िरी घड़ी है
कि फ़िर न आ पाएगी , ये वो नामुराद घड़ी है
सोचा था हर रोज़ के माफ़िक ये लौटेगी, मगर
वफ़ा के मानिंद ही वफ़ादार वफ़ात की घड़ी है।
होली आयेगी साथ में तुम्हारी याद भी आएगी
मगर तुम्हारे अबीर के बिना लौट जाया करेगी।
शै= चीज़। रौनके मानूस= चिर परिचित रौनक।
नामुराद= बदनसीब। अबीर= रंग।
वफ़ात= final repose.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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