चलो चमन में कुछ चहलक़दमी करते हें
बादे सबा से कुछ दिली गुफ़्तगू करते हें
ये न समझना मुझे आपका ख़याल नहीं
ऐ आसमाँ आप ही तो कफ़ालत करते हें ।
जो बज़ाहिरा है ख़ुद ही ख़याल रखता है
जो पोशीदा है सबको मुस्तकिल रखता है ।
ये सुबह की हवा आई है अरबिस्तान से
नाश्ता फ़ारस से, वाट्सऐप इंग्लिस्तान से
जिसने मुझको बाँधा है आलमे लाहूत से
वो ढाई आखर प्रेम का आया हिंदुस्तान से ।
उसने चश्मे से देखा और जिन्ना बना दिया
माँ के चश्मा न था , उसने मुन्ना बना दिया ।
आवाज़ से भी इन्सान को पहिचान सकते हें
कोई शीरीन है या तल्ख़, ये भी जान सकते हें
किसी को है ग़र उँस मगर किसी को है खुँस
बिना देखे हुए भी चेहरा, यह बखान सकते हें ।
उसे सम्हाल के रखना आख़िर मुहाल ही था
पाना उस हवा मिज़ाज को एक अजूबा ही था ।
खो खो के पाया किया है कई बार मैंने उसको
बेवफ़ाई में भी ख़ुशियाँ मिलती रही हें मुझको
जिस्म को तो एक दिन मैं हार जाऊँगा मौत से
हाँ ख़ुशबू की तरह बिखरा मिल जाऊँगा उसको ।
मुझको इसी बात का डर सताता रहता है हरदम
उसका नाम न कोई मेरे चेहरे पे पढ़ ले गजर दम ।
इधर से ढकते हें तो उधर से उघड़ जाता है बदन
ज़िन्दगी न हुई गोया बन गई ग़ुरबत का पेरहन
पहिचान न पाये भला एक दूसरे को अभी तक
कोई बतायेगा ये रिवायतन है या कि इरादतन ।
कोई उस जैसा तो अभी तलक भी मिला ही नहीं
हक़ीक़त ये भी है कि वो भी अभी मिला ही नहीं ।
बादे सबा = सुबह की हवा । गुफ़्तगू = बातचीत ।
कफ़ालत= सुरक्षा । बज़ाहिरा= प्रकट में ।
पोशीदा = गुप्त । मुस्तकिल = स्थिर ।
आलमे लाहूत = जहाँ सिर्फ़ ईश्वर ही हो ।
शीरीन= मीठा । तल्ख़ = तीखा । उँस= प्यार ।
मुहाल = असंभव। गजर दम = अलस्सुबह।
ग़ुरबत = ग़रीबी । पेरहन= पोशाक ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
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