उन्हें क्या पता था, ये दिन देखना था
मज़बूरियों का, क़ाफ़िला देखना था ।
ये भूखे ये नंगे , चले जा रहे हें
हें पाओं में छाले, मगर जा रहे हें
ये गिरते हें उठते, पसीनों से तर
गले तो हें प्यासे, मगर जा रहे हें।
इतने ये मज़बूर , क्यों हो रहे हें ?
क्यों ख़ुदही अर्थी, लिए जा रहे हें ?
बेकसी में उन्हें , रास्ता नापना था
लाचारियों का , कारवाँ देखना था ।
उन्हें क्या पता था ये दिन देखना था
मज़बूरियों का क़ाफ़िला देखना था ।
क्या मेहनत में इनसे कसर रह गई ?
क्या बोझे को ढोते कमर सो गई ?
दुपहरी को सर से गुज़ारा नहीं क्या ?
गाली की गोली निगली नहीं क्या ?
सूनी सूनी हें आँखें, होश गुम गया
घिसते घिसते संग, नसीब घिस गया ।
क्या धरती को इनके , तले चूमने थे ?
या बेबसी में चलते , इन्हें देखना था ?
उन्हें क्या पता था, ये दिन देखना था
मज़बूरियों का, क़ाफ़िला देखना था ।
जहाँ पर भी गए ये , बस छले ही गए
हमदम मिला नहीं , बस डर मिल गए ।
सब कुछ लुट गया , अब घर जा रहे
जहाँ अपना सा लगता , वहीं जा रहे ।
आसमॉओं ने भी कोई , की नहीं मदद
ख़ामोशी में चलता, जा रहा ये जनपद ।
इनसानियत को, बढ़ के पहिचानना था
जिसने ग़लती की थी , उसे मानना था ।
उन्हें क्या पता था, ये दिन देखना था
मज़बूरियों का, क़ाफ़िला देखना था ।
बेकसी = helplessness. संग = पत्थर ।
नसीब = भाग्य । हमदम = दोस्त ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
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