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Saturday, June 4, 2022

आफ़ताब ए फ़लक

सुबह जब शम्स उठता है मेरा सर झुकने लगता है
मेरी आँखें दुआ करतीं वो उन्हें जब  छूने लगता है
मैं अपने दिल में ज्यों ही , मुकर्रर उसको करता  हूँ
मेरा  फड़फड़ाता   दिल , मुझे  ख़ामोश  लगता  है।

इधर  चिकेडी  चहकती है  उधर  सूरज  दमकता है
वो  मेप्पल  हिला के  डाली, ख़ैर मक़दम  कहता है
मैं  जब  खो  रहा  होता  हूँ, हवा  मुझको जगाती है
देख  कर  सारा  नज़ारा  आसमाँ , हँसने  लगता  है।

सूरज  की  आहट  से  अँधेरा , मिटने  लगता  है
ज़र्रा ज़र्रा  ज़मीं  का  फ़िर  से , जगने  लगता  है
आसमाँ  से  ज़मीं  तक  किरणें  रास्ता बनातीं है
मिल कर के उनसे हर  गुल, मुस्कुराने  लगता  है।

ये  रिश्ता  मेरा उससे, साल दर साल सलामत है
वो  मेहरबाँ  मुझ  पर, मुझे  मिलती  क़राबत   है 
उसकी सखावत देखकर  मैं उससे  मुतास्सिर  हूँ
उसकी सदाक़त ही  बन गई  उसकी  सदारत  है।

उसकी  सदारत  में हुआ करती हर शै लाजवाब
तकदीर  का  सूरज  चमकने   लगता   बेहिसाब
विरासत  के  लिए  जो  समझते  थे  अहम, बेटा
बेटियाँ  साबित  हो रहीं हैं  फ़लक  में आफ़ताब।

आफ़ताब ए फ़लक= आसमान का सूरज।
चिकेडी= chickadee. मेप्पल= maple.
शम्स= सूरज। ख़ैर मक़दम= स्वागत है।
क़राबत= निकटता। सख़ावत= उदारता।
मुतास्सिर= प्रभावित। सदाक़त= सच्चाई।
सदारत= अध्यक्षता। शै= चीज़।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


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