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Thursday, July 14, 2022

हुस्न ए समाअत

ये  मेपल  का पेड़  और  मैं 
ये नीला  आसमान और  मैं 
ये बादल का टुकड़ा और मैं
सब कुछ नकद है यहाँ 
नहीं कुछ उधार है यहाँ 
इसीसे  मैं  बैठता  यहाँ 
प्यार बहता इसीसे यहाँ 
प्यार बहता इसीसे यहाँ ।

चिकेडी भी आती है यहाँ 
रोबिन भी  गाती है  यहाँ 
फ़िंच  मुस्कुराती  है यहाँ 
मुझे  इनसे  प्यार   है  बहुत 
इनको मुझसे  प्यार है बहुत 
एक दूजे का ख़्याल है बहुत 
इसीसे प्यार बहता यहाँ 
इसीसे प्यार बहता यहाँ ।

हम रहें ना  रहें , बहारें  तो  रहेंगी
हवाओं  की  सरसराहट तो रहेगी 
फ़िज़ाओं की मुस्कुराहट तो रहेगी
प्यार  ही  तो एक  दौलत  है 
इसी को तो कहते मुरव्वत है 
यही  तो  हुस्न ए समाअत है 
यही तो बहता है यहाँ 
यही बहता रहेगा यहाँ ।

हुस्न ए समाअत= सुनने की beauty.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।



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