इतने जो सपने सँजोए थे , क्या उन्हें भुला सकता हूँ?
मैं मागने गया था उनको , घर उनके, अम्मा से बाबुल से
सौंप दिया, भरोसा किया मुझ पे, क्या ये भुला सकता हूँ?
मुझे ज़रूरत थी उनकी, इसलिए माँग के लाया था उन्हें
कैसे निभाया वो भरोसा उन्होंने, क्या ये भुला सकता हूँ?
कितनी दफ़ा चाँद को पूजा था , साथ मिलकर के हमने
चाँद को गवाह बनाया था हमने, क्या ये भुला सकता हूँ?
उस दिन कोयल आके बोली थी अपने आम के पेड़ पे
दोनो ने झाँका था खिड़की से, क्या वो भुला सकता हूँ?
क्या सिफ़त थी, रच दिया कैसा नायाब बग़ीचा हमारा
मेरे देखते बाग़बान चला गया, क्या ये भुला सकता हूँ?
पता था बोलता कम, लिखता ज़्यादा हूँ, फ़ोन पर भी
मौन ज़्यादा काम आता था , क्या ये भुला सकता हूँ?
सारे मानक बदल गये , क्या कह दूँ , सावन आ गया?
जो बोलता हूँ ग़लत होता है , क्या ये भुला सकता हूँ?
पहले बिना बोले सूना न था ; अब ख़ुद से बोलता हूँ
मगर सन्नाटा जाता नहीं , क्या इसे भुला सकता हूँ?
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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